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बादल / बालकृष्ण गर्ग
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(1)
गरज रहा बादल घम-घम,
चमक रही बिजली चम-चम,
बरस रहा पानी झम-झम,
धरती तर, गर्मी अब कम।
(2)
चमके जब बिजली चंचल,
गरजे तब गड़-गड़ बादल।
प्यास बुझता धरती की,
यही कला उसने सीखी।
[रचना : 8 मई 1996]