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बादल / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
नभ में छाए काले बादल
कहीं लाल कहीं भूरे बादल।
उमड़-घुमड़ कर आते बादल,
दिन को रात बनाते बादल।
पानी भरकर लाते बादल,
धरती पर बरसाते बादल।
सूखे बाग-बगीचों को फिर,
हरा-भरा कर जाते बादल।
कभी रूठकर जाते बादल,
और कभी तरसाते बादल।
हलवाहों को दुःखी देखकर,
झट पानी बरसाते बादल।
आ रे बादल ! प्यारे बादल,
सबका मन हरषा रे बादल !
सूखी धरती हरी-भरी कर,
तू भी तो इठला रे बादल !