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बादल / सुभाष राय

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जलते अधरों पर गिरी बून्दें
छनछनाकर उड़ गईं पल भर में..
इन्तज़ार में दहक रहा था मन
तन से उठ रहा था धुआँ
नसों में बह रहा था लावा

तुम आए शीतल बयार की तरह
बादलों में छिपकर
मेरे आँगन में बरस गए
भीगा मैं इतना कि भाप बन गया

पर अभी ठहरना कुछ दिन
कुछ और दिन मेरे आस-पास
जब तक मैं भाप से
फिर चमकती
बून्दों में नहीं बदलता