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बादशाह -भोज- खंड / मलिक मोहम्मद जायसी

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मुखपृष्ठ: पद्मावत / मलिक मोहम्मद जायसी

छागर मेढा बड औ छोटे । धरि धरि आने जहँ लगि मोटे ॥
हरिन, रोझ, लगना बन बसे । चीतर गोइन, झाँख औ ससै ॥
तीतर, बटई, लवा न बाँचे । सारस, कूज , पुछार जो नाचे ॥
धरे परेवा पंडुक हेरी । खेहा, गुडरू और बगेरी ॥
हारिल, चरग, चाह बँदि परे । बन-कुक्कुट, जल-कुक्कुट धरे ॥
चकई चकवा और पिदारे । नकटा, लेदी, सोन सलारे ॥
मोट बडे सो टोइ टोइ धरे । ऊबर दूबर खुरुक न, चरे ॥

कंठ परी जब छूरी रकत ढुरा होइ आँसु ।
कित आपन तन पोखा भखा परावा माँसु ?॥1॥

धरे माछ पढिना औ रोहू । धीमर मारत करै न छोहू ॥
सिधरी, सौरि, धरी जल गाढे । टेंगर टोइ टोइ सब काढे ॥
सींगी भाकुर बिनि सब धरी । पथरी बहुत बाँब बनगरी ॥
मारे चरख औ चाल्ह पियासी । जल तजि कहाँ जाहिं जलबासी ?॥
मन होइ मीन चरा सुख-चारा । परा जाल को दुख निरुवारा ?॥
माँटी खाय मच्छ नहिं बाँचे । बाँचहि काह भोग-सुख-राँचे ?॥
मारै कहँ सब अस कै पाले । को उबार तेहि सरवर-घाले ?॥

एहि दुख काँटहि सारि कै रकत न राखा देह ।
पंथ भुलाइ आइ जल बाझे झूठे जगत सनेह ॥2॥

देखत गोहूँ कर हिय फाटा । आने तहाँ होव जहँ आटा ॥
तब पीसे जब पहिले धोए । कपरछानि माँडे, भल पोए ॥
चढी कराही, पाकहिं पूरी । मुख महँ परत होहि सो चूरी ॥
जानहुँ तपत सेत औ उजरी । नैनू चाहि अधिक वै कोंवरी ॥
मुख मेलत खन जाहिं बिलाई । सहस सवाद सो पाव जो खाई ॥
लुचुई पोइ पोइ घिउ-मेई । पाछे छानि खाँड-रस मेई ॥
पूरि सोहारी कर घिउ चूआ । छुअत, डरन्ह को छूआ ? ॥

कही न जाहिं मिठाई, कहत मीठ सुठि बात ।
खात अघात न कोई, हियरा जात सेरात ॥3॥

चढे जो चाउर बरनि न जाहीं । बरन बरन सब सुगँध बसाहीं ॥
रायभोग औ काजर-रानी । झिनवा, रुदवा, दाउदखानी ॥
बासमती, कजरी, रतनारी । मधुकर, ढेला, झीनासारी ॥
घिउकाँदौ औ कुँवरबिलासू । रामबास आवै अति बासू ॥
लौंगचूर लाची अति बाँके । सोनखरीका कपुरा पाके ॥
कोरहन,बडहन, जडहन मिला । औ संसारतिलक खँडविला ॥
धनिया देवल और अजाना । कहँ लगि बरनौं जावत धाना ॥

सोंधे सहस बरन, अस सुगंध बासना छूटि ।
मधुकर पुहुप जो बन रहे आइ परे सब टूटि ॥4॥

निरमल माँसु अनूप बघारा । तेहि के अव बरनौं परकारा ॥
कटुवा, बटुवा मिला सुबासू । सीझा अनबन भाँति गरासू ॥
बहुतै सोंधे घिउ महँ तरे । कस्तूरी केसर सौं भरे ॥
सेंधा लोन परा सब हाँडी । काटी कंदमूर कै आँडी ॥
सोआ सौंफ उतारे घना । तिन्ह तें अधिक आव बासना ॥
पानि उतारहिं ताकहिं ताका । घीउ परेह माहिं सब पाका ॥
औ लीन्हें माँसुन्ह के खंडा । लागे चुरै सो बड बड हंडा ॥

छागर बहुत समूची धरी सरागन्ह भूँजि ।
जो अस जेंवन जेंवै उठै सींघ अस गूँजि ॥5॥

भूँजि समोसा घिउ महँ काढे । लौंग मरिच जिन्ह भीतर ठाढे ॥
और माँसु जो अनबन बाँटा । भए फर फूल, आम औ भाँटा ॥
नारँग, दारिउँ, तुरँज, जभीरा । औ हिंदवाना, बालम खीरा ॥
कटहर बडहर तेउ सँवारे । नरियर, दाख, खजूर, छोहारे ॥
औ जावत जो खजहजा होहीं । जो जेहि बरन सवाद सो ओहीं ॥
सिरका भेइ काढि जनु आने । कवँल जो कीन्ह रहे बिगसाने ॥
कीन्ह मसेवरा, सीझि रसोई । जो किछु सबै माँसु सौं होई ॥

बारी आइ पुकारेसि लीन्ह सबै करि छूँछ ।
सब रस लीन्ह रसोई, को अव मोकहँ पूछ ॥6॥

काटे माछ मेलि दधि धोए । औ पखारि बहु बार निचोए ॥
करुए तेल कीन्ह बसवारू । मेथी कर तब दीन्ह बघारू ॥
जुगुति जुगुति सब माँछ बघारे । आम चीरि तिन्ह माँझ उतारे ॥
औ परेह तिन्ह चुटपुट राखा । सो रस सुरस पाव जो चाखा ॥
भाँति भाँति सब खाँडर तरे । अंडा तरि तरि बेहर धरे ॥
घीउ टाँक महँ सोंध सेरावा । लौंग मरिच तेहि ऊपर नावा ॥
कुहुँकुहुँ परा कपूर-बसावा । नख तें बघारि कीन्ह अरदावा ॥

घिरित परेह रहा तस हाथ पहुँच लगि बूड ।
बिरिध खाइ नव जोबन सौ तिरिया सौं ऊड ॥7॥

भाँति भाँति सीझीं तरकारी । कइउ भाँति कोहँडन कै फारी ॥
बने आनि लौआ परबती । रयता कीन्ह काटि रती रती ॥
चूक लाइ कै रींधे भाँटा । अरुई कहँ भल अरहन बाटा ॥
तोरई, चिचिडा, डेंडसी तरी । जीर धुँगार झार सब भरी ॥
परवर कुँदरू भूँजे ठाढे । बहुत घिउ महँ चुरमुर काढे ॥
करुई काढि करैला काटे । आदी मेलि तरे कै खाटे ॥
रींधे ठाढ सेब के फारा । छौंकि साग पुनि सोंध उतारा ॥

सीझीं सब तरकारी भा जेंवन सव ऊँच ।
दहुँ का रुचै साह कहँ, केहि पर दिस्टि पहुँच ॥8॥

घिउ कराह भरि, बेगर धरा । भाँति भाँति के पाकहिं बरा ॥
एक त आदी मरिच सौं पीठा । दूसर दूध खाँड सौ मीठा ॥
भई मुगौछी मरिचैं परी । कीन्ह मुगौरा औ बहु बरी ॥
भईं मेथौरी, सिरका परा । सोंठि नाइ कै जरसा धरा ॥
माठा महि महियाउर नावा । भीज बरा नैनू जनु खावा ॥
खंडै कीन्ह आमचुर परा । लौंग लायची सौं खँडवरा ॥
कढी सँवारी और फुलौरी । औ खँडवानी लाइ बरौरी ॥

रिकवँच कीन्हि नाइ कै, हींग मरिच औ आद ।
एक खंड जौ खाइ तौ पावै सहस सवाद ॥9॥

तहरी पाकि, लौंग औ गरी । परी चिरौंजी औ खरहरी ॥
घिउ महँ भीँजि पकाए पेठा । औ अमृत गुरंब भरे मेटा ॥
चुंबक-लोहँडा औटा खोवा । भा हलुवा घिउ गरत निचोवा ॥
सिखरन सोंध छनाई गाढी । जामी दूध दही कै साढी ॥
दूध दही कै मुरंडा बाँधे । और सँधाने अनबन साधे ॥
भइ जो मिठाई कही न जाई । मुख मेलत खन जाइ बिलाई ॥
मोतीचूर, छाल औ ठोरी । माठ, पिराकैं और बुँदौरी ॥

फेरी पापर भूँजे, भा अनेक परकार ।
भइ जाउरि पछियाउरि; सीझी सब जेवनार ॥10॥

जत परकार रसोइ बखानी । तत सब भई पानि सौं सानी ॥
पानी मूल, परिख जौ कोई । पानी बिना सवाद न होई ॥
अमृत-पान सह अमृत आना । पानी सौं घट रहै पराना ॥
पानी दूध औ पानी घीऊ । पानि घटे, घट रहै न जीऊ ॥
पानी माँझ समानी जोती । पानिहि उपजै मानिक मोती ॥
पानिहि सौं सब निरमल कला । पानी छुए होइ निरमला ॥
सो पानी मन गरब न करई । सीस नाइ खाले पग धरई ॥

मुहमद नीर गँभीर जो भरे सो मिले समुंद ।
भरै ते भारी होइ रहे, छूँछे बाजहिं दुंद ॥11॥


(1) रोझ = नीलगाय । लगना = एक वनमृग । चीतर = चित्रमृग । गोइन = कोई मृग । झाँख = एक प्रकार का बडा जंगली हिरन; जैसे - ठाढे ढिग बाघ, बिग, चिते चितवत झाँख मृग शाखा मृग सब रीझि रीझि रहे हैं । ससे = खरहे । पुछार = मोर । खेहा = केहा, बटेर की तरह की एक चिडिया । जुडरू = कोई पक्षी । बगेरी = भरद्वाज, भरुही । चरग = बाज की जाति की एक चिडिया । चाह = चाहा नामक जलपक्षी । पिदारे = पिद््दे । नकटा = एक छोटी चिडिया सोन, सलारे =कोई पक्षी । खुरुक = खटका । पढिना =पाठीन मछली, पहिना । रोहू, सिधरी, सौरी टेंगरा, सींगी, भाकुर, पथरी, बनगरी, चरख, पियासी = मछलियों के नाम । बाँब = बाम मछली जो देखने में साँप कि तरह लगती है । चाल्ह = चेल्हवा मछली । निरुवारा = छुडाए ।

(2) राँचे = अनुरक्त, लिप्त । तेहि सरवर-घाले = उस सरोवर में पडे हुए को कौन बचा सकता है । ( जीवपक्ष में संसार -सागर में पडे हुए का कौन उद्धार कर सकता है । एहि मुख...देह = इसी दुख से तो मछली ने शरीर में काँटे लगाकर, रक्त नहीं रखा। तपत जलती हुई , गरम गरम । नैनू = नवनीत , मक्खन । कोंवरी = कोमल । घिउ मेई = घी का मोयन दी हुई । कहत म मीठ ...बात = उनके नाम लेने से मुँह मीठा हो जाता है ।

(4) काजर-रानी = रानी काजल नाम का चावल । रायभोग, झिनवा, रुदवा, दाउदखानी, बासमती, कजरी मधुकर, ढेला, झीनासारी, घिउकाँदो, कुँवर-बिलास, रामबास, लवँगचूर, लाची, सोनखरिका, कपूरी, संसारतिलक, खँडविला, धनिया, देवल = चावलों के नाम । पुहुप = फूलों पर ।

(5) कटुवा = खंड खंड कटा हुआ । बटुआ = सिल पर बटा या पिसा हुआ । अनबन = विविध,अनेक। गरासू = ग्रास, कौर । तरे = तले हुए । आँडी = अंठी, गाँठ । ताकहिं ताका =तवा देखते हैं । परेह = रसा, शोरबा । सरागन्ह = सिखचों पर, शलाकाओं पर । गूँजि उठे ।

(6) ठाढे = खडी, समूची । भए फर...भाँटा = माँस ही अनेक प्रकार के फल-फूल के रूप में बना है । हिंदवाना = तरबूज, कलींदा । बालम खीरा = खीरे की एक जाति । खजहजा = खाने के फल । सिरका भेइ...आने = मानों सिरके में भिगोए हुए फल समूचे लाकर रखे गए हैं (सिरके में पडे हुए फल ज्यों के त्यों रहते हैं) । मसेवरा = माँस की बनी चीजें सीझि = पक्की, सिद्ध हुई । बारी = काछी या माली । बारी आइ...छूँछ = माली ने पुकार मचाई कि मेरे यहाँ जो फल-फूल थे वे सब तो मुझे खाली करके ले लिए अर्थात् वे सब माँस ही के बना लिए गए ।

(7) पखारि = धोकर । बसवारू = छौंक । परेह = रसा । खाँडर = कतले । तरि = तलकर । बेहर = अलग । टाँक =बरतन, कटोरा । सेरावा = ठंढा किया । नख = एक गंधद्रव्य । अरदावा = कुचला या भुरता । पहुँच लगि =पहुँचा या कलाई तक । ऊड = विवाह करे या रखे (ऊढ)।

(8) फारी = फाल, टुकडे । लौआ = घीया, कद्दू । रयता = रायता । रती रती = महीन महीन । चूक = खटाई । रींधे =पकाए । अरहन = चने की पिसी दाल जो तरकारी में पकाते समय डाली जाती है रेहन । बाटा = पीसा । डेंडसी = कुम्हडे की तरह की एक तरकारी, टिंड,(टिडिस) तरी = तली । धुँगार =छौंक । चुरमुर = कुरकुरे । करुई काडि = कडवापन निकालकर (नमक हल्दी के साथ मलकर ) । कै खाटै = खट्टे करके । फारा = फाल, टुकडे ।

(9) बेगर = उर्द या मूँग का रवादार आटा, धुँवाँस । बरा =बडा । पीठा पीसा गया । मुँगौछी = मूँग का पक वान । मुँगौरा = मूँग की पकौडी । मेथौरी = एक प्रकार की बडी । खरसा = एक पकवान । महियाउर = मट्ठे में पका चावल । नैनू = नवनीत, मक्खन । बरौरी =बढी । रिकवँच = अरुई या कच्चू के पत्ते पीठी में लपेटकर बनाए हुए बडे । आद = अदरक ।

(10) तहरी = बडी और हरी मटर के दानों की खिचडी । खरहरी = खरिक, छुहारा । गुरंब = शीरे में रखे हुए आम । मेटा = मिट्टी के बरतन , मटके ।लोहँडा = लोहे का सतला । मुरंडा = पानी निथार कर पिंडाकार बँधा दही या छेना । सँधाने = अचार । छाल = एक मिठाई । टोरी = ठौर । पिराकैं = गोझिया । बुँदोरी = बुँदिया । पछियाउरि = मट्ठे में भिगोई बुँदिया । सीझी = सिद्ध हुई,पकी ।

(11) जत = जितनी । तत = उतनी । पानी मूल ....कोई = जो कोई विचार कर देखे तो पानी ही सबका मूल है । अमृत-पान = अमृत पान के लिये । दुंद = ठक ठक ।