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बादाम खा रहा है वह कट्टा निकाल के / अशोक अंजुम

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बादाम खा रहा है वो कट्टा निकाल के
सबको डरा रहा है वो कट्टा निकाल के

मेरी ग़ज़ल में मेरे लहू की है रोशनी
अपनी बता रहा है वो कट्टा निकाल के

वरना तो बदतमीजियाँ टिकने नहीं देतीं
बच्चे पढ़ा रहा है वो कट्टा निकाल के

गर और कोई होता तो कर जाते हम हज़म
कर्ज़ा पटा रहा है वो कट्टा निकाल के

जो प्यार से बुलाता तो हरगिज़ न पहुँचते
हमको बुला रहा है वो कट्टा निकाल के

है किसमें दम जो सुन के वाह-वाह ना करे
ग़ज़लें सुना रहा है वो कट्टा निकाल के

मेरी उड़ी हुई है हवाई मैं क्या करूँ
औ’ खिलखिला रहा है वो कट्टा निकाल के

ख़ुद बीड़ी फूँकता है औ’ टीचर जी लगे हैं
परचा लिखा रहा है वो कट्टा निकाल के

ये बाॅस ने कहा तुम्हें छुट्टी न मिलेगी
छुट्टी मना रहा है वो कट्टा निकाल के

अंजुम जी मानना तो पड़ेगा हर हाल में
तुमको मना रहा है वो कट्टा निकाल के