भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादे-बहार आई, ख़ुशबू-ख़ुमार लाई / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादे-बहार आई, ख़ुशबू-ख़ुमार लाई
ख़ुशियों का है ये मौसम, परिवार को बधाई

सूरजमुखी खिली है, ख़ुश रंग हैं फज़ाएँ
बादे-सबा ने कैसी प्यारी ग़ज़ल बनाई

भंवरो की गुनगुनाहट कोयल की कूक प्यारी
उनसे चुराके सरगम, ये धुन मधुर बनाई

चंचल-सी एक तितली चूमे सुमन सुमन को
शरमा के हर कली भी, जाने क्यों मुस्कराई

बरसात भीनी-भीनी उस पर घनी घटायें
शबनम की ओस जैसे मन को भिगोने आई

चारों तरफ हैं झूमे झोंके हवा के ‘देवी’
मदहोश होके जैसे फस्ले-बहार आई

गुलज़ार महके ‘देवी’ दिल दिल को दे दुआएँ
मंथन किया जो मन का अनुभूति सुख की पाई.