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बाद-ए-ग़म जिस को पीना आ गया़ / 'नसीम' शाहजहांपुरी
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बाद-ए-ग़म जिस को पीना आ गया
उस को जीने का क़रीना आ गया
कितने तूफ़ाँ हाथ मल कर रह गए
जब किनारे पर सफ़ीना आ गया
दिल में ग़म रू-पोश हो कर रह गए
जब ख़याल-ए-जाम ओ मीना आ गया
हादसात-ए-नौ-ब-नौ का शुक्रिया
आ गया मर मर के जीना आ गया
जब ढले आँसू तो हम समझे ‘नसीम’
ग़म की बारिश का महीना आ गया