भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाद तुम्हारे सब अपनों के मनमाने व्यवहार हुए / कृष्ण कुमार ‘नाज़’
Kavita Kosh से
बाद तुम्हारे सब अपनों के मनमाने व्यवहार हुए
मुस्कानें ही क्या, आँसू भी सालाना त्योहार हुए
आँखों में तूफ़ान मचा तो दामन की दरकार हुई
और जब दामन हाथ में आया, सब आँसू ख़ुद्दार हुए
पैसों के बदले बच्चों से माँग रहे हैं मुस्कानें
जैसे ये माँ-बाप न होकर, रिश्वत के बाज़ार हुए
घर में सबकी अपनी ख़्वाहिश, सबकी अपनी फ़रमाइश
आज हमें तनख़्वाह मिली है, हम भी इज़्ज़तदार हुए
सबकी नज़रों में तो अपने घर के मुखिया हैं अब भी
लेकिन बच्चों की नज़रों में हम बासी अख़बार हुए
झूठ पे सच की चादर डाले खेल रहे हैं अपना खेल
दोहरेपन को जीने वाले हम नक़ली किरदार हुए
चिंता, उलझन, दुख-सुख, नफ़रत, प्यार, वफ़ा, आँसू, मुस्कान
एक ज़रा-सी जान के देखो कितने हिस्सेदार हुए