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बाधा-बंधन में जकड़ल बानी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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बाधा-बधन अकड़ल बनीभें
चाहतानीं कि छूट जाईं,
बाकिर एके छोड़े में कष्ट होता।
मुक्ति माँगे तहरा लगे आवतानीं
बाकिर माँगे का बेरा लजा जातानीं।
जानतानीं कि तूं ही हमरा जीवन के
सबसे श्रेष्ठ निधि हउवऽ
दुनिया में अइसन कवनो धन नइखे
जे तहार बराबरी कर सको!
तबहूँ हमरा घर में जे सब
फूटलो-फटल बरतन-बसन ब
ओके फेंके में हमरा मोह लागत बा।
तहरा के अलोता क के
अपना हृदय पर धूरा डालल
मरन के नेवता देहल ह।
हम भीतरे-भीतर ए सब से घृणा करिले
तबहूँ ना जानीं जे काहे
हमरा ओही सबसे लगाव बा।
कतना त हम बाकी रखले बानीं
कतना खाली फाँकी मरले बानीं।
गिनती के बहुत बा विफलता,
बहुत कइले बानीं तोपा-तपी।
एही से जब अपना भलाई खातिर
तहरा सनमुख जाय के चाहिले
त हमार मन भय से काँपे लागेला।