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बान्ध लिए अँजुरी में जूही के फूल / रवीन्द्र भ्रमर
Kavita Kosh से
बान्ध लिए
अँजुरी में
जूही के फूल ।
मधुर गन्ध,
मन की हर एक गली महक गई,
सुखद परस,
रग रग में चिनगी सी दहक गई
रोम-रोम
उग आए
साधों के शूल !!
जोन्हा का जादू
जिन पँखुरियों था फैला,
छू गन्दे हाथों
मैंने उन्हें किया मैला,
हाथ काट लो —
मेरे...
सज़ा है क़बूल !!
आह !
हो गई मुझसे
एक बड़ी भूल !
अँजुरी में
बान्ध लिए
जूही के फूल !!