भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बान्ध लिए अँजुरी में जूही के फूल / रवीन्द्र भ्रमर
Kavita Kosh से
					
										
					
					बान्ध लिए 
अँजुरी में
जूही के फूल ।
मधुर गन्ध,
मन की हर एक गली महक गई,
सुखद परस,
रग रग में चिनगी सी दहक गई
रोम-रोम 
उग आए
साधों के शूल !!
जोन्हा का जादू
जिन पँखुरियों था फैला,
छू गन्दे हाथों
मैंने उन्हें किया मैला,
हाथ काट लो —
मेरे...
सज़ा है क़बूल !!
आह !
हो गई मुझसे 
एक बड़ी भूल !
अँजुरी में 
बान्ध लिए 
जूही के फूल !!
	
	