भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बापड़ा दिन रात / ओम पुरोहित कागद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आई हो ला
राज री मदद
अपघट रै बाद
आज री दांईं
काळीबंगां में
लाध्यो हो ला
सूनो थेड़
अणबोल्यो टसकतो
भीतर खातै
पण कुण सुणतो
सुणतो ई कुण
भीतरली बात
बस लांघता रैया थेड़
बापड़ा दिन रात
काळ नै टरकांवता
पान्ना कुण पळटतो
पंचागं रा
दीमक री भूख
कीं दिन इं मिटी।