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बापूक व्यथा / नारायण झा

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हमर तन उघार छल
हृदय विह्वल छल
अपन माटिक झाँपन लेल
एखनहुँ हमरा एना
उघाड़ ठाढ़ कयने छी
कथी लेल?
मात्र विज्ञापन आ परचारक लेल
एकटा पोलीथीन
जे टंगने रहैछ हमर देह
आ ओहि प्रभुता केँ
हमर स्वाबलंबी स्वभाव केँ
हमर सत्य आ अहिंसा केँ
हमर बलिदान केँ
हमर निस्वार्थ सेवा
आ अनवरत त्याग केँ
किए एना
हमरा बेचि रहल छी
मन जरा रहल छी
ठाढ़ क' क' रौद मे
बरिसात आ बिहाड़ि मे
भरि दिन-राति।

हम तखन भेलहुँ अवाक्
फराक भँ केलहुँ क्रन्दन
जखन हमर देहक कण-कण
रक्तक बून्न
हमर चश्मा
हमर कपड़ा
हमर किताब
हमर अंगपोच्छा
हमर कलम
की मात्र नीलामे लेल
बनल छल
बोली पर बोली
लगैत रहल
एहि देशक माटि
एहि देशक स्वाभिमान
टका बलेँ निंघटैत रहल
जोखाइत रहल प्रभुता
आँखि मूनि
सोचि रहल छी
कानि रहल छी
विवश भँ
चुप छी देखि-देखि।