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बापू की पद-चिह्न-पंक्ति-सी मिट न सकेगी धरती पर / गुलाब खंडेलवाल

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बापू की पद-चिह्न-पंक्ति-सी मिट न सकेगी धरती पर
स्वानुभूतियाँ मेरी, इनको पढ़-पढ़कर सारा संसार
पायेगा संतोष, शान्ति, जैसे बापू का स्वर सुनकर,
इन्हीं दीपकों से फैलेंगी ज्योति अहिंसा की अविकार
 
मैं जड़ साधन मात्र सत्य की इस चिर-दुर्दम आँधी का
शंख-सदृश जयघोष कर रहा, मैं पूजन का प्रतनु प्रतीक,
भृत्य भारवाही मैं, शुभ सन्देश सुनाता गाँधी का,
खींच चला मुख पर आँसू की, उर-उर पर पत्थर की लीक.
 
यह वंदन मेरा न कभी, सारे भारत का, हिन्दी का,
बापू का वंदन यह बापू-सा सुन्दर हो, शाश्वत हो,
भक्ति-प्रणत हो, मानवता के गौर भाल की बिंदी का
यह चित्रांकन अमर अपर्णा का सत्यान्वेषक व्रत हो
 
शिव से हो परिणय, मिट जायँ अशिवता के जड़ भाव सभी
कृती-सती का, धृती-व्रती का पुन: न हो विच्छेद कभी.