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बापू कें समर्पित काव्यांजलि / आभा झा

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सन अठरह सौ उनहत्तरि मे
दू अक्टूबर केर स्वर्णिम पल
एक सत्यपाल ह्रदयक विशाल
भारतक भूमि के लाल बनल।

छलि धन्याँ पुतली बाई माय
जे राष्ट्रमहानायक पोसलन्हि
पय पान करौलनि सत्य प्रेम
करुणामय रस उर में भरलन्हिं।

सत्याग्रह मूलमंत्र जनिकर
प्रतिकार कयल अत्याचारक
अनुगमन हरिश्चंद्रक कएलन्हि
ओ परम सिनेही प्रह्लादक।

आध्यात्मिक राजनीतिक वल सँ
विख्यात महात्मा विश्व भरिक
बनि दीपशिखा अनवरत जड़ैत
कएल सबहक अंतस ज्योतित।

बंधन सँ मुक्त भेली वसुधा
नव ध्वज संग सविता भेल उदित
उन्मुक्त गगन के पंछी बनि
सभ लगय प्रफुल्लित आनंदित।

कहू कोना घेरलकै दुर्मतिया?
बनि व्याधा मोहन कें बेधलक
हे राम! राम! कहि बिदा भेला
भारत कें दु: खक तमस घेरलक।

अछि पापक बोझ बढ़ल भारी
भोगथि वसुंधरा दुसह कष्ट
हे अमर संत! घुरि आउ पुनः
एहि भ्रष्टतंत्र कें करू नष्ट।