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बापू चारो धाम चले हैं / राघव शुक्ल

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चार सुतों को बिना बताए
बापू चारो धाम चले हैं

सबसे बड़ा पुत्र है बद्री
बैठा रहता दिन भर खाली
उसे न भाता मेहनत करना
बहुत तेज उसकी घरवाली
बड़ी बहू को लगता बापू
बिन मतलब ही पड़े गले हैं

मझला वाला पुत्र द्वारिका
करता है दिन भर मजदूरी
लेकिन शाम जहां आती है
उसका पीना बहुत जरूरी
उसकी नशे भरी नजरों में
बूढ़े बापू सदा खले हैं

पुत्र तीसरा जगन्नाथ है
वह पत्तों का बड़ा खिलाड़ी
चार जीतता बीस हारता
गई हाथ से खेती बाड़ी
उसे देखकर बापू सोचे
बंसी बिन औलाद भले हैं

सबसे छोटा रामेश्वर है
वह भी दिल्ली गया कमाने
कहां रहेगा क्या खाएगा
कैसा होगा ईश्वर जाने
अपनी बिखरी हुई गृहस्थी
देख पिता के नयन जले हैं