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बापू सँ / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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1
आप्त वचन बापू! अहाँक जे हमसब तँ छी सबटा बिसरल,
जतय प्रकाश पुंज-जरै छल ततहि अन्हार आइ अछि पसरल।
अहिंसाक जे नयसमास छल सत्यक आइ पछोड़ पकड़ने
सबतरि जगभरि विचरि रहल अछि मानवताकेँ सतत जकड़ने॥
2
विश्व-बन्धुता केर बात तँ वचने धरि सम्प्रति अछि सीमित,
क्रिया रूपमे सांघातिक शस्त्रास्त्रक अछि भण्डार अपरिमित।
स्वार्थक महाव्याल बीहरिसँ रहि रहिकय फुफकारि रहल अछि,
धर्मक रक्षा केर नाम पर म्लेच्छक दल ललकारि रहल अछि॥
3
शत्रु मित्रमे भेद बुझत से बुद्धि सभक भुतिआय गेल अछि
शंकर कहुना रूद्र वनथु बस तकरे एक उपाय भेल अछि।
भौतिकताक दौड़मे मानवताक बात चल गेल रसातल,
शुम्भ-निशुम्भ लङौटा कसने ठोकय ताल अहंसँ मातल।
4
अर्थे सभ्यताक परिचायक, अर्थ बनल अछि मूल अनर्थक,
बापू! बुझना जाइत अछि जे गेल अहँक बलिदान निरर्थक।
सज्जन जे जन छथि धरती पर तनिक लोक बुझै छनि कायर,
अछि विज्ञान भिडल जे कहुना ब्रह्मा बाबा होथु ‘रिटायर’॥
5
दीन-हीन सौंसे संसारक जन-साधारण अछि आतंकित
सेवाव्रती फलाहारी सब सेवेकेँ कय देल कलंकित।
संस्कृतिकेर विकासक नामेँ विकृति प्रकृतिकेँ करय प्रदूषित,
क्रूरताक मस्तक पर देखी चन्द्रकान्तमणि आइ विभूषित॥
6
महाविनाशक क्षणक आगमन सम्भावित हो, तेहन लगै अछि
कहितहुँ सब ही फोलि, हृदय मे भाव अजस्त्र अनन्त जगै अछि।
किन्तु भेल कण्ठावरोध तेँ मनहि अहुछिया काटि रहल छी,
आ कुसियारक पोर जकाँ पछवामे अपने फाटि रहल छी॥
7
रामराज्य तँ एक हकारक योगेँ आइ हराम राज्य अछि
कदाचार युगधर्म बनल तेँ सदाचार सर्वथा त्याज्य अछि।
नगर-नगरमे चौक-चौक पर प्रस्तरमूर्त्ति अहँक अछि स्थापित
गामक देश कहबितो बापू! गामे भय रहले विस्थापित॥
8
गणतन्त्रक शासक गणपतिकेर धोधि क्रमहि फुलले जा रहलनि
पता लगयबालै अवैध धन पुलिसक दल हुलले जा रहलनि।
भीतर नाला गन्हा रहल अछि बाहर सँ सब सीधा-सादा
बापू! सरिपहुँ एतय ध्वस्त अछि जनतन्त्रक सबटा मर्यादा॥