बापू से / छवि निगम
क्रांति तो होगी ही बापू
तय है! कौन रोकने पाएंगे?
सत्य अहिंसा महंगे आइटम, अब हम न खरीदने पाएंगे
कसी रगों को फोड़, खौलता लहू लाएगा जलजले
खाल उधेड़ती चाबुक थामे, हाथ बदल अब जायेंगे।
बगावत कर देंगी फसलें सारी
, अपने शोषण को धिक्कारेंगी ।
नीवें उखड़ आएँगी आज़ाद हो
बुर्जुआ कंगूरों का सर झुकायेंगी।
बचपन डर, जा छिपा रहेगा किन्ही अधमुंदी पलकों में
पूंजीवादी सपने न होंगे विधवा भौजी की आँखों में
उफनती जवानी की कामरेडी चहुंओर हरहरायेगी।
गर्द पाट देगी सब गरतें, सैलाब समानता लाएंगे
धरती कड़ा कर लेगी सीना अपना
फावड़े कुदाल हल औजार, सब चूर चूर हो जायेंगे।
बादल बरसाएंगे परचम, नदी केवल ललकारें बांचेगी
सपनो के निवाले निगल सूखी अंतड़ियां नारे लगाएंगी।
क्या नैतिक क्या है अनैतिक बापू?
सर्वहारा तो सदा लूटा ही जायेगा
क्रांति तो होगी ही बापू, बस इक लाल रंग रह जायेगा।
धधकता लावा फूंक देगा हर दरोदीवार, हर छत को
बैनर एक लपेटे, बेचारा बेपर्दा आँगन रह जायेगा।
पर अँधा'वाद धोखा ही देगा, गरीब ठगा रह जायेगा
समय का पहिया रिवोल्यूशन की कीचड़ में फंसके रह जायेगा
ठिठक जायेंगे सारे हारे पग डग में एक दिन फिर से
फिर कोई लाठी थामे, ऐनक से मूँछों में मुस्कायेगा
अँगुलियों भर झुर्रियां पोंछ डालेंगी जंग के निशां सारे
पेशानी पे प्यार लिए, फिर जीने को, जग कोई और जुगाड़ लगाएगा
सीपी से झांकता बचपन, फिर से तुम्हें गुहार लगायेगा
यही क्रांति तो होगी बापू, तुम्हें कौन रोकना चाहेगा।