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बापू / शीला तिवारी

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हे सहस्त्राब्द के नायक
कालखंड पर अमिट रेख
कोटि-कोटि नमन तुझको
परिधि बाँध न पाता जिसको
हे अर्द्ध नंगे फकीर
बुद्ध, महावीर संदेशों के वाहक
निरस्त्र, निःशस्त्र योद्धा, लड़ाका
जिसने दी युद्ध की बदल परिभाषा
दिया विश्व को पथ सत्य अहिंसा का
पराक्रम से थर्रा गया, चरमरा गयी
दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य
हिल गए सिंहासन, सोचने लगा दुर्दांत परेशान
ओजस्विता जिसके तेजस दिव्य बल
सत्याग्रह अखंड-प्रखंड ज्योति जिसकी
असहयोग, अनशन भरता शक्ति
विद्वेष, घृणा, अस्पृश्यता से देता जो मुक्ति
आत्मबल जिसमें कूट-कूट भरा
कर सकता वही मानव विश्व फतह
हिमालय सा शिखर जो अड़ा- डटा
अपने सिद्धांतों के लिए वही मरा
गाँधी तेरे विचारों के ज्वारों से
नव प्रवाह नवल हो उठा तिरंगा
जनमानस में आस्था पराकाष्ठा बन
जन सैलाब विकल प्रबल चल पड़ा
दासता अब स्वीकार न होगी
स्वराज बना जन-जन की आवाज
घर-घर चरखा चलता घन-घन
खादी में जागी जनता का प्यार
नया सवेरा जग उठा हिन्दुस्तान
वंदे मातरम नव ऊर्जा उदघोष प्राण
लड़ता जो अनीतियों, कुरीतियों से अंदर-बाहर
नैतिकता, आधुनिक विचारों को लिए जान
संस्कृति की श्रेष्ठता पर अहं गर्व
सर्वस्व त्याग, पर पीड़ राग
सर्व हित सम भाव लिए समर्पण
हुआ महान युग प्रवर्तक संत का अवतरण
युग दृष्टा, युग श्रेष्ठ, युग प्रवर्तक
काल खंड पर लिखता शिलालेख
युग-युग में आते ऐसे सपूत
इतिहास में बनाते स्वर्णिम आलेख
हे संत, क्या तेरा उद्येश्य मानवता
हर दृगों के पटल की आशा
राम राज्य में रचते आस्था, निष्ठा
रची विश्व की कालजयी व्याख्या
हे हाड मांस के पुतले,
तुझको कालखंड बाँध न सकता
एक दिन चलना पड़ेगा, आना पड़ेगा विश्व को
शांति, अहिंसा, विश्व कल्याण की राह।