भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाप और बेटा छोड़ सरा नै फेर रोवते चाले / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्ता- सज्जनों भठियारी रानी अम्बली पर ही आरोप लगाती है तथा राजा अम्ब और सरवर नीर को भी सराय से निकाल देती है तब कवि उनकी मनःस्थिति का क्या चित्रण करता है-

आल्हा तै हम अदना होंगे होणी नै घर घाले।
बाप और बेटा छोड़ सरा नै फेर रोंवते चाले।टेक

अमृतसर तै चाल पड़े वा धूप गिणी ना छाया
भूख प्यास मंे व्याकुल होगे ना सोधी मैं काया
थोड़ी दूर चले फेर उन्नै मां का जिकर चलाया
मैं बोल्या मत फिकर करो तम सब्र करो मेरी माया
दोनूं बालक रोवण लागे कुण कुण से नै समझाले।

लड़क्यां कान्ही ख्याल गया मेरी आंख नीर तै भरगी
जुल्म करे उस पापण नैं जो तम नै छोड़ डिगरगी
मझधार मैं डबो गई म्हारी रे रे माटी करगी
रोवण का द्यो ख्याल छोड़ वा थारे लेखै मरगी
नौ नौ महीने लिए राख पेट मैं अपणे हाथां पाले।

दुःख विपता मैं आवै तवाला शरीर रहै ना सौंधी मैं
एक आत्मा क्यूकर ओटूं ना क्याहें का मोदी मै
सरवर की लई पकड़ आंगली नीर लिया गोदी में
प्यारा मित्र कोण पड़ैं बता औरां की खोदी में
ताता रेत जेठ का महीना पड़ पड़ फुटैं छाले।

जाटां का यो काम मेहर सिंह के गावण का हो सै
छोरे छारे बैठे हों तै दिल बहलावण का हो सै
छूटे पाछे बखत फेर के थ्यावण का हो सै
राजा का के काम बता पत्ते ल्यावण का हो सै
इसतै आछा हे मालिक म्हारी माटी नै संगवाले।