बाप डूबग्या दरिया के म्हा मा जननी गई खोई / मेहर सिंह
वार्ता- सरवर और नीर को एक धोबी-धोबिन एक किनारे पर इकट्ठा कर देते हैं तथा अपने धर्म के बेटे बना कर उन का पालन पोषण करते हैं। धोबी-धोबिन जब उनसे उनके बारे में जानना चाहते हैं तो सरवर-नीर क्या जवाब देते हैं-
के बुझोगे दर्द मर्ज की ना जाती विपता रोई।
बाप डूबग्या दरिया के म्हां मां जननी गई खोई।टेक
हम दुखियारे जतन बता द्यो दुःख भागै किस तरियां
माता पिता और बुआ बहाण का मोह त्यागै किस तरियां
बच्चेपण मैं दुःख देख्या जी लागै किस तरियां
तकदीरां का बेरा कोन्या बीतै आगै किस तरियां
मारे मारे फिरां भरमते देगा कोण रसोई।
दो दिन होगे भूखे मरते रोटी खाई कोन्या
भूख प्यास नै शरीर झेलज्या गात समाई कोन्या
पणमेशर भी रूस गया म्हारा खसम गोसाई कोन्या
गोती नाती मित्र प्यारे सबनै आंख चुरोई।
जो लागी भीतरले मैं वा चोट बैठ कै सैहगे
नादान उम्र थी ना पार बसाई खड़े देखते रैहगे
छोड़ नीर नै पिता वापिस आए धार बीच मैं बैहगे
एक बात तो सुणाने लायक मरते मरते कैहगे
बणी बणी के यार तीन सौ बिगड़ी का ना कोई।
इस दुनियां मैं कहलाणा इन्सान भाग मैं ना सै
कर्म करे का फल मिलता बेइमान भाग मैं ना सै
पैसा धेला पास नहीं पुन्य दान भाग मैं ना सै
सारे कै ठोकर खा लिन्ही पर ज्ञान भाग मैं ना सै
कहै जाट मेहर सिंह कवियां आगै वृथा जीभ बिलोई।