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बाबा के दुलारी बेटी तोहे हे सीता बेटी / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेटी खेलने के लिए फुलवारी में गई। उसका पति घोड़े पर सवार होकर आया। उसने उससे अपने देश चलने का अनुरोध किया। लड़की ने उसके देश के विषय में पूछा। वहाँ की समृद्धि का हाल सुनकर वह उसके साथ चली गई। अपने घर पहुँचने पर दुलहे ने अपनी माँ से अनुरोध किया- ‘माँ, बहू को तुम अपनी बेटी की तरह रखना।’ माँ ने उत्तर दिया- ‘यह असंभव है। जो प्यार बेटी के लिए है, उसकी अधिकारिणी पतोहू कैसे हो सकती है?’

बाबा के दुलारी बेटी तोहें हे सीता बेटी, खेलन गेल चमेली फुलबरिया हे।
घोड़बा चढ़ल आबै छिनारी पूत, चलहो धनि अपन देसबा हे॥1॥
कैसन हटिया परभु कैसन बटिया, केकर पँजरबा बैठायब<ref>बैठाऊँगा</ref> हे।
रँगल हटिया हे धनि चीकन बटिया, अम्माँ के पँजरबा लागि बैठायब हे॥2॥
जैसन बुझिहैं गे अम्माँ अपन धिआ, ओइसन बुझिहैं गे अम्माँ पराय के बेटिया हे।
ओरिया<ref>ओरी; ओलती। ढलुवाँ छप्पर का वह भाग, जहाँ से वर्षा का पानी नीचे गिरता है। वह भाग, जहाँ ओलती का पानी गिरता हो</ref> के पानी रे बाबू बरेरी<ref>बरेंड़ी। लकड़ी का वह गोल, मोटा लट्ठा, जो खरपैल या छाजन की लंबाई के बल पर एक से दूसरे पाखे तक रहता है। छाजन या खपरैल के बीचोबीच का सबसे ऊँचा भाग। वरंडक=गोला, गोल लकड़ी</ref> नहिं छूबिहैं, धिआ के दुलार पुतहू कहाँ पैहें हे॥3॥

शब्दार्थ
<references/>