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बाबा गुरूनानक की पाँचवी शताब्दी पर / नज़ीर बनारसी

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नहाने उतरा है पूनम का चाँद पानी में
न स्वर्ग साँस ले क्यूँ रात की जवानी में
इज़ाफ़ा क्यूँ न हो गंगा तेरी रवानी में
गुरू का जश्न है शंकर की राजधानी में
क़रीब है जो गुरू बाग़ आस्ताने से
हवाएँ काशी में आती है नानकाने से
गिरे हुओं को जो ऊँचा उठाए ऐ साक़ी
वो जिसके बाद जमाही न आए ऐ साक़ी
जो ज़ात-पात का झगड़ा मिटाए ऐ साक़ी
जो सबके दिल की लगी को बुझाए ऐ साक़ी
वो ढाल, साया-ए-ग़म की तरह जो ढल जाए
चले न जाम मगर सबका काम चल जाए
पिला दे बादा-ए-तौहीद पीरे मैख़ाना
न मिलने पाए हक़ीक़त में रंगे अफ़साना
शराब एक हो इक रंग का हो पैमाना
सुरूर भी मेरा सबसे रहे जुदागाना
सदी है पाँचवी दे भर के पाँच पैमाने
और इस तरह से कि मै जानूँ या ख़ुदा जाने
फ़रीद बाबा की सौग़न्ध वो शराब दे तू
गज़क हो ऐसी, गरीबों का जिसमें हो न लहू
कि बूँद-बूँ से आए सदाए अल्ला हू
निचोड़ी जाये अगर, आए दूध की ख़ुशबू
वो रिज़्क जिसमें तुझे कुछ कलाम है साक़ी
खु़दा गवाह वो मुझ पर हराम है साक़ी
हर आदमी को जो तालीमे आदमीयत दे
हर एक रिन्द को सत्संग की जो दावत दे
जो देशवासियों को देश की मुहब्बत दे
बग़ैर जाम के जो क़ल्ब को हरारत दे
रबाब <ref>साज़</ref> छेड़ के मरदाना-ए-गुरू नानक
मुझे पिला वही पैमाना-ए-गुरू नानक
खड़ा था देर से दर पर हुजूमे रिन्दाना <ref>शराबी की भीड़</ref>
चलाया पीरे मुगाँ ने जो दौरे पैमाना
खुली वो आँख हुआ इफ्तिताहे मैख़ाना <ref>मदिरालय का उद्घाटन</ref>
किसी को बाला बनाया किसी को मरदाना
किया न रिन्दों ने फिर शिकवा बेश और कम का
नज़र बदलते ही बदला मिज़ाज मौसम का
क़सम है बादा-ए-तौहीदे रूह परवर की
छुड़ा दी एक नज़र में शराब बाबर की
क़सम है आँखों के दोनों छलकते साग़र की
नज़र मिला के ख़बर ले ली ज़िन्दगी भर की
कभी शराब को ख़ातिर में अपनी ला न सका
जहाँ से उठ गया सुल्तान, जाम उठा न सका
नए सिरे से मुहब्बत का एहतमाम किया
हर इक शराब को तुमने शरीके जाम किया
हर एक मज़हब ओ मिल्लत का एहतराम किया
जो काम कर न सका कोई भी वो काम किया
वो मय पिलाई कि होश आ गया ज़माने को
सलाम रिन्दों ने भेजे गुरू घराने को
जबीं को हुस्ने इबादत से जगमगाए हुए
हर इक चीज़ से दुनिया की हाथ उठाए हुए
खु़दा की याद में आँखों को डबडबाए हुए
ये कौन ध्यान में बैठा है सर झुकाए हुए
चमन है आरिजे गुलमँू <ref>गुलाब सा लाल</ref> नज़र नज़र है किरन
ये जल्वागर गुरू नानक हैं या कि सुबहे वतन
तुम्हारा अदना सा मरदाना सबसे आला है
तुम्हारे चेलों की हल्क़ा गुलों की माला है
तुम्हारे बाला का दुनिया में बोलबाला है
तुम्हारी हस्ती वतन का हसीं शिवाला है
सरापा गुन हो सरापा ज्ञान हो बाबा
तुम एक बोलता हिन्दोस्तान हो बाबा
वफ़ा की रूह सदाक़त की जान हो बाबा
हिमालया की तरह से महान हो बाबा
खु़दा गवाह खु़दा की अमान हो बाबा
मिरे वतन के हक़ीक़ी निशान हो बाबा
अदा-ए-फ़र्ज़ ब सद एहतिराम करता है
तुम्हें ’’सफ़ीरे-बनारस’’ <ref>बनारस का प्रतिनिधि अर्थात् स्वयं नज़ीर बनारसी</ref> सलाम करता है
कहाँ हो ऐ गुरू नानक के कफ़्श बरदारो <ref>अदब से जूता उठाने वालो</ref>
नहीं तुम्हारे ही सर सेहरा ऊँची दस्तारो
हमें भी साथ लो बाबा के ऐ अलमदारो
फ़क़त तुम्हारी ही दौलत नहीं है सरदारो
तरह-तरह से है मरक़ूम हम्द <ref>ईश्वरीय गुण</ref> उस रब की
गुरू ग्रन्थ अमानत है सबके मज़हब की

शब्दार्थ
<references/>