बाबा जू भर आयँ / दुर्गेश दीक्षित
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ,
कुजानें कित्ते ढौंग दिखायँ!
लगाकै चौंतइया पै होम,
बिनैं सी करैं पकर कैं कान,
फुरोरू लैकें दो इक दार,
उचट कैं गिरबैं उल्टे ज्वान।
मुलक्कीं हाँकें देतइ जायँ,
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
रगड़ कैं सूदी टिहुनी मार,
चिचाबै चाय कितेकउ खून,
उचल गई करयाई की खाल,
रगड़ कैं दई जिओरा की दून।
कोउ-कोउ गोड़े हाँत कपायँ,
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
खुरन कै ई धरती खौं खूँद,
बमकबैं बँदरा से हरदार,
पकर कैं लाल लुअर-सी साँग,
कबउँ कओ दै देबैं ललकार।
उतै बे हाँपत रए मौं बायँ,
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
उठाकैं मैंकी मायँ भबूत,
गुटइया बाबा की जै बाल,
लगो जब तनक घोल्लाँ खम्भ,
सुनैं बे सबकी बातें खोल।
तमाखू धरकैं पण्डा प्यायँ,
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
लगी फिर बिन्त्वारी खौं भीर,
कबैं कोऊ मोंड़ै चड़ो बुखार,
पिरा रओ कोउ कबै के पेट,
कबै कोउ गइया भइ बेजार।
उतै कोऊ खतियाँ-खाज झरायँ
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
भुमनियाँ कै रओ कै महाराज,
अबै नौं पानी नइँ बरसाव,
नाज कौ बढ़ रओ दनौ भाव।
बतादो का हम औरें खायँ?
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
उतै हुन मैंक मुठी भर राख,
”चलो जा हवा न अब उड़ जैय,
करौ अब दूध-करूला ऐंन,
बता दो फलिया कबनौ दैय।
समइया आबै नौनों नायँ,“
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
”पुजाकैं पैलाँ खेर-बहेर,
कुवाँरी जुबवा दिइयौ पाँच,
मजे सैं खेलौ-कूदौ खाव,
समज लो आय न एकऊ आँच।“
भजनया भजन कैऊ ठऊ गायँ,
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
धरीं तीं पचवन्नीं अठवाइँ,
मगाकैं धर लओ पानी लाल,
जरा रए तेल और लोबान,
फुलै रए बैठे-बैठे गाल।
तकौ जा उल्टी हो रइ दायँ।
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।
उठे फिर गेर-फेर सैं हात,
खुरोरू बटीं नारियल फोर,
तमासौ तको न हमसैं जाय,
‘हमैं दो’ हो रओ गेरऊँ सोर।
इनैं ना और कछू की भायँ,
बिटऊ खौं बाबा जू भर आयँ।