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बाबा तुम करूणा के धन हो / विमल राजस्थानी

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बाबा! तुम करूणा के घन हो-
मम मरूस्थल पर भी बरसो ना
इन कुविचारों की छाती पर -
वज्र सदृश्य युगल -चरण धरो ना!
हडी-पसली चूर-चूर हो
इन दुष्टों से हदय दूर हो
जब - तब बहुत सताते है ये
नर्क-द्वार ले जाते है ये
तव चिन्तन से भस्मीभूत -
होने पर भी बल खाते है ये
जड़ से इन्हें उखाड़ फेंक दूँ
सुविचारों पर दृष्टि टेक दूँ
मेरे मन में केवल बाबा!
भक्ति -भाव, अनुरक्ति भरो ना
बाबा! तुम करूणा के धन हो
मम मरूथल पर भी बरसो ना
इन कुविचारों की छाती पर-
वज्र सदृश्य युगल - चरण धरो ना।
सुविचारों की चहल-पहल हो
उनकी आमद सहज-सहल हो
तेरा चिंतन, मधुर स्मरण-
छवि-दर्शन प्रतिक्षण, प्रतिपल हो।

साँस-साँस में रमे रहो तुम
मेरे मन में थमे रहो तुम
कुविचारों की भनक न पाऊँ
आठों याम भजूँ, गुण गाऊँ
सपनों में भी तुम्हें पुकारूँ
मानव - जीवन माँज, सँवारूँ
जड़ - चेतन-अणु-अणु-कण -कण में

हे नटनागर ! तुम्हें निहारूँ
इन कुविचारों के बंधन से-
ओ मेरे आराध्य! उबारो
चिर निद्रा की घड़ियों में प्रभु!
चाह यही-कह ‘विमल’ पुकारो
कह ‘तथास्तु’ हे हरि! सपनें में-
दर्शन दे, आश्वस्त करो ना
स्वामी! तुम इन कुविचारों पर
अपने रातुल चरण धरो ना।