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बाबा हो धन लोभित धनवे लोभाइ गेल / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बाबा हो धन लोभित<ref>लोभी</ref> धनवे<ref>धन पर</ref> लोभाइ<ref>लुब्ध हो गये</ref> गेल।
सातो नदिया पार कयलऽ<ref>कर दिया</ref>।
केहि<ref>कौन</ref> अइहें<ref>आयेंगे</ref> केहिं जइहें, सनेस<ref>संदेश, उपहार के रूप में संबंधी के यहाँ मिठाई, फल, कपड़े, सिंदूर, चूड़ी आदि भेजी जाने वाली चीजें</ref> पहुँचइहें।
कउन भइया बाट बहुरयतन, अम्मा से भेंट होयतन<ref>होगी</ref> हे॥1॥
नउआ<ref>नाई</ref> अयतन, बरिया<ref>बारी, एक जाति विशेष</ref> जयतन, सनेस पहुँचयतन हे।
कवन भइया बाट बहुरयतन, अम्मा से मिलन होयतन हे॥2॥
शब्दार्थ
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