बाबिय यार / येव्गेनी येव्तुशेंको / मदन केशरी
बाबिय यार के वीराने में कोई स्मारक नहीं ।
केवल एक चट्टान है, किसी क़ब्र के खुरदरे पत्थर की तरह ।
मैं डरा हुआ हूँ ।
आज मैं अपनी उम्र में उतने बरस ढो रहा हूँ
जितने सारे यहूदियों की उम्र ।
अब मैं महसूस कर रहा हूँ कि जैसे मैं स्वयं एक यहूदी हूँ ।
यहाँ मैं प्राचीन मिस्र की ज़मीन से गुज़र रहा हूँ,
सलीब पर लटका मैं मर रहा हूँ यहाँ,
आज तक मेरे शरीर पर मौज़ूद हैं कीलों के निशान ।
मैं महसूस कर रहा हूँ जैसे मैं हूँ ड्रिफ़स
फ़िलिस्तीनियों ने मुझे धोखा दिया — और अब न्याय का नाटक रच रहे है ।
सलाख़ों के पीछे हूँ मैं, हर तरफ से घिरा
प्रताड़ित, कलंकित, जिसके ऊपर तिरस्कार में थूका गया बार-बार ।
ब्रुसेल्स के जालीदार लेस में नाज़ुक औरतें, आपस में फुस्फुसातीं
मेरे मुँह में ठूँसती हैं अपनी छतरियाँ ।
मैं महसूस करता हूँ बेलोस्तोक के एक युवक की तरह ।
रक्त बह रहा है, फ़र्श पर फैल रहा,
बार-रूम में हुड़दंग करनेवालों से वोदका और प्याज की गन्ध आ रही ।
जूते की एक ठोकर मुझे धकेलती है, मुझमें थोड़ी भी ताक़त बाक़ी नहीं ।
हत्या के लिए व्यग्र उन युवकों से मैं याचना करता हूँ ।
जिस वक़्त वे चिल्ला रहे हैं ‘‘यहूदियों को मारो ! रूस को बचाओ !’’
उस वक़्त कोई राशन का दलाल पीट रहा है मेरी माँ को ।
मेरे रूसी भाइयो ! मुझे मालूम है
कि मूल रूप से विश्ववादी है आपकी सोच,
लेकिन कुछ लोग, जिनके हाथ दाग़ से भरे हैं,
उन्होंने तुम्हारे पवित्र नाम को महज़ एक नारे में बदल दिया है.
मुझे अपनी मिट्टी की महानता का भास है,
मगर कैसे इन सैमाइट-विरोधी (यहूदी विरोधी) लोगों ने बगैर तनिक झिझक
स्वयं को घोषित किया है ‘समस्त रूसी जन का गणराज्य’!
मैं ऐन फ्रैंक की तरह महसूस करता हूँ,
अप्रिल माह की नई पत्ती की तरह पारदर्शी,
प्रेम में डूबा हूँ मैं, मुझे मुहावरों की आवश्यकता नहीं,
मैं बस चाहता हूँ कि एक-दूसरे की आँखों में देखते रहें ।
कितना कम हम देख पाते हैं
या अपनी सांसों में महसूस कर पाते हैं !
हम वसन्त की हरी कोपलों से वंचित हैं,
वंचित हैं हम आकाश के एक टुकड़े से.
फिर भी बहुत कुछ है जो हम कर सकते हैं,
जैसे नर्म पलों में अन्धेरे कमरे में एक-दूसरे को बाँहों में बाँधना ।
‘‘क्या वे यहां आ रहे हैं ?’’
‘‘डरो मत! यह आहट है वसन्त के पैरों की : वसन्त आ रहा है.
ऐसे में, तुम मेरे पास आओ ! लाओ अपने होंठ मेरे नज़दीक । ज़ल्दी !’’
‘‘क्या वे दरवाज़े तोड़ने लगे हैं ?’’
‘‘नहीं, यह बर्फ़ के चटखने की आवाज़ है…’’
बाबिय यार की नीरवता में जंगली घास हवा में सरसरा रही है,
पेड़ भयावह दिख रहे हैं, मानो फैसला सुनाते न्यायाधीश ।
यहाँ हर चीज़ बेआवाज़ चीत्कार करती है,
मुझे लग रहा है मेरे बाल सफेद हो रहें हैं, ऐसा महसूस हो रहा है.
और मैं खुद भी एक लम्बी, निःशब्द चीख़ हूँ
यहाँ हज़ारों-हज़ार दफ़न हुए लोगों के बीच फैलती हुई ।
यहाँ जिसे गोली मारा गया, वह हर वृद्ध मैं हूँ,
हर वह बच्चा मैं हूँ जिसकी हत्या हुई यहाँ,
मेरे शरीर का कोई भी रेशा इसे कभी न भूल पाएगा!
‘विश्व-बंधुत्व’ के गीत को आकाश में गूँजने दो,
इस वक़्त जब पृथ्वी का अन्तिम सैमाइट-विरोधी (यहूदी विरोधी)
दफ़न किया जा रहा है हमेशा के लिए.
मेरे रक्त में यहूदी रक्त नहीं,
मगर, अपने घृणाभरे आक्रोश में, समस्त सैमाइट-विरोधी (यहूदी विरोधी)
मुझ से एक यहूदी की तरह घृणा करेंगे.
और इस अर्थ में मैं हूँ एक सच्चा रूसी.
सन्दर्भ :
(1) बाबिय यार : उक्रअईना की राजधानी कीव के समीप पूर्ववर्ती सोवियत संघ का सबसे रक्त-रंजित स्थल, जहाँ दो दिनों के सैन्य-अभियान में नाज़ियों ने, सितम्बर 29-30, 1941 को 33,771 यहूदी स्त्री-पुरुष और बच्चों को मौत के घाट उतार दिया था ।
(2) अल्फ्रेड ड्रीफ़स (1859-1935): फ्राँसीसी सेना का एक यहूदी अफ़सर, जिसे राष्ट्रद्रोह के झूठे अभियोग में कारावास की सज़ा दी गई थी (1895) और ग्यारह वर्ष बाद मुक्त किया गया था (1906) ।
(3) बेलोस्तोक: उक्रअईना में एक स्थान जहाँ ‘प्रोग्रोम’ (नरसंहार) का सबसे हिंसक चेहरा उभरकर आया; यहूदी परिवारों पर सामूहिक हमले हुए और उनका नियोजित ढंग से विनाश किया गया ।
(4) एनेलिस मैरी ‘ऐन’ फ्रैंक (1929-1945): एम्स्टर्डम की एक यहूदी युवती, जिसे उसके समूचे परिवार के साथ गिरफ़्तार कर बर्ज़न-बेल्सन यातना शिविर में डाल दिया गया था, जहाँ टाइफस ज्वर से उसकी मृत्यु हुई । 1947 में उसकी डायरी प्रकाशित हुई जो नाज़ी यातना शिविरों की भयावहता का भोगा हुआ सच उद्घाटित करती है ।
(5) समाजवादी विचारधारा के अन्तरराष्ट्रीय गान का श़ीर्षक है ‘इण्टरनेशनल’, जिसकी मुख्य विषयवस्तु है विश्व-बन्धुत्व; 1922 से 1944 के बीच यह गीत सोवियत संघ का राष्ट्रगान रहा; ‘ ‘इण्टरनेशनल’ का स्थायी टेक हैः ’यह निर्णायक संघर्ष है / हम आज एकजुट हों, (ताकि) कल / समूची मानव-जाति विश्व-बंधुत्व में बँधे’ ।
अनुवादक की टिप्पणी :
कविता एक से अधिक अंग्रेज़ी अनुवादों पर आधारित है, ताकि कविता की अन्तर-वस्तु अपने मूल अर्थ और सन्दर्भ के अधिक से अधिक समीप रहे. दो भाषाओं की अलग चरित्र-विशिष्टता के कारण कहीं-कहीं काव्य-अभिव्यक्ति बदल दी गई हैं ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मदन केशरी
लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए, जो मूल रूसी कविता से काफ़ी भिन्न है ।
Yevgeny Yevtushenko
Babi Yar
TNo monument stands over Babi Yar.
A drop sheer as a crude gravestone.
I am afraid.
Today I am as old in years
as all the Jewish people.
Now I seem to be
a Jew.
Here I plod through ancient Egypt.
Here I perish crucified on the cross,
and to this day I bear the scars of nails.
I seem to be
Dreyfus.
The Philistine
is both informer and judge.
I am behind bars.
Beset on every side.
Hounded,
spat on,
slandered.
Squealing, dainty ladies in flounced Brussels lace
stick their parasols into my face.
I seem to be then
a young boy in Byelostok.
Blood runs, spilling over the floors.
The barroom rabble-rousers
give off a stench of vodka and onion.
A boot kicks me aside, helpless.
In vain I plead with these pogrom bullies.
While they jeer and shout,
'Beat the Yids. Save Russia!'
Some grain-marketer beats up my mother.
O my Russian people!
I know
you
are international to the core.
But those with unclean hands
have often made a jingle of your purest name.
I know the goodness of my land.
How vile these antisemites—
without a qualm
they pompously called themselves
the Union of the Russian People!
I seem to be
Anne Frank
transparent
as a branch in April.
And I love.
And have no need of phrases.
My need
is that we gaze into each other.
How little we can see
or smell!
We are denied the leaves,
we are denied the sky.
Yet we can do so much—
tenderly
embrace each other in a darkened room.
They're coming here?
Be not afraid. Those are the booming
sounds of spring:
spring is coming here.
Come then to me.
Quick, give me your lips.
Are they smashing down the door?
No, it's the ice breaking . . .
The wild grasses rustle over Babi Yar.
The trees look ominous,
like judges.
Here all things scream silently,
and, baring my head,
slowly I feel myself
turning grey.
And I myself
am one massive, soundless scream
above the thousand thousand buried here.
I am
each old man
here shot dead.
I am
every child
here shot dead.
Nothing in me
shall ever forget!
The 'Internationale,' let it
thunder
when the last antisemite on earth
is buried for ever.
In my blood there is no Jewish blood.
In their callous rage, all antisemites
must hate me now as a Jew.
For that reason
I am a true Russian!
1961
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Евгений Евтушенко
Бабий Яр
Над Бабьим Яром памятников нет.
Крутой обрыв, как грубое надгробье.
Мне страшно.
Мне сегодня столько лет,
как самому еврейскому народу.Мне кажется сейчас —
я иудей.
Вот я бреду по древнему Египту.
А вот я, на кресте распятый, гибну,
и до сих пор на мне — следы гвоздей.
Мне кажется, что Дрейфус —
это я.
Мещанство —
мой доносчик и судья.
Я за решеткой.
Я попал в кольцо.
Затравленный,
оплеванный,
оболганный.
И дамочки с брюссельскими оборками,
визжа, зонтами тычут мне в лицо.
Мне кажется —
я мальчик в Белостоке.
Кровь льется, растекаясь по полам.
Бесчинствуют вожди трактирной стойки
и пахнут водкой с луком пополам.
Я, сапогом отброшенный, бессилен.
Напрасно я погромщиков молю.
Под гогот:
«Бей жидов, спасай Россию!»-
насилует лабазник мать мою.
О, русский мой народ! —
Я знаю —
ты
По сущности интернационален.
Но часто те, чьи руки нечисты,
твоим чистейшим именем бряцали.
Я знаю доброту твоей земли.
Как подло,
что, и жилочкой не дрогнув,
антисемиты пышно нарекли
себя «Союзом русского народа»!
Мне кажется —
я — это Анна Франк,
прозрачная,
как веточка в апреле.
И я люблю.
И мне не надо фраз.
Мне надо,
чтоб друг в друга мы смотрели.
Как мало можно видеть,
обонять!
Нельзя нам листьев
и нельзя нам неба.
Но можно очень много —
это нежно
друг друга в темной комнате обнять.
Сюда идут?
Не бойся — это гулы
самой весны —
она сюда идет.
Иди ко мне.
Дай мне скорее губы.
Ломают дверь?
Нет — это ледоход…
Над Бабьим Яром шелест диких трав.
Деревья смотрят грозно,
по-судейски.
Все молча здесь кричит,
и, шапку сняв,
я чувствую,
как медленно седею.
И сам я,
как сплошной беззвучный крик,
над тысячами тысяч погребенных.
Я —
каждый здесь расстрелянный старик.
Я —
каждый здесь расстрелянный ребенок.
Ничто во мне
про это не забудет!
«Интернационал»
пусть прогремит,
когда навеки похоронен будет
последний на земле антисемит.
Еврейской крови нет в крови моей.
Но ненавистен злобой заскорузлой
я всем антисемитам,
как еврей,
и потому —
я настоящий русский!
1961 г.