भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबुल भी रोए बेटी भी रोए / आनंद बख़्शी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
बाबुल भी रोए बेटी भी रोए माँ के कलेजे के टुकड़े होंए
कैसी अनहोनी वो रीत निभाई कोई जन्म दे कोई ले जाए
बाबुल भी रोए ...

हमने लाड़ों से जिसको पाला आज उसी को घर से निकाला
हम क्या चीज़ हैं राजे महाराजे बेटी को घर में रख ना पाए
बाबुल भी रोए ...

पीछे रह गया प्यार पुराना आगे जीवन पथ अन्जाना
साथ दुआएं ले जा सबकी और तो कोई साथ न आए
बाबुल भी रोए ...

भाई बहन की बिछड़ी जोड़ी रह गईं दिल में यादें थोड़ी
जाने ये तक़दीर निगोड़ी फिर कब बिछुड़ी प्रीत मिलाए
बाबुल भी रोए ...

ये हाथों की चन्द लकीरें इनमें लिखीं सबकी तक़दीरें
कागज़ हो तो फाड़ के फेंकूं उस का लिखा कौन मिटाए
बाबुल भी रोए ...