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बाबूजी! समझे क्या? / प्रदीप शुक्ल
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बाबूजी! समझे क्या?
आया चुनाव है
पँच साला खेल है
बस रेलम पेल है
राजा के हाँथों में
रेशमी गुलेल है
चिड़िया के पंखों पर
खून का रिसाव है
आया चुनाव है
ये मुसहर टोला है
वो जुम्मन, भोला है
लोगों ने पोखर में
खूब जहर घोला है
राजा ने भिजवाई
पत्थर की नाव है
आया चुनाव है
झंडे हैं नारे हैं
वादे ढेर सारे हैं
सपनों की थान लिए
खड़े वो दुआरे हैं
हाथों में सूची है
चिन्हित हर गाँव है
बाबूजी! समझे क्या?
आया चुनाव है