भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबूजी / मनोज शांडिल्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बात बस
आङ्गुर पकड़ि क’
चलब भरि सिखा देबाक
नहि अछि

बात बस
परिवारक बीच
मेरुदण्ड बनि
सम्बल भरि होयबाक
आकि, सेराइत रक्त मे
सुसुम विश्वास भरि घोरि देबाक
नहि अछि

आ ने
ई बात मात्र
हमर नजरि मे
महानायक बनि
प्रेरणा स्वरुप
हमरा
अपन कर्मठताक
जीवंत पाठशाला मे
जीयब सिखा देबाक भरि अछि

बात अछि
हमर अनर्गल जिद सबकेँ
अपन जीवनक उत्तप्त धरातल पर
अर्जित कएल अभिज्ञताक अस्त्र सँ
समय-समय पर खंडित कय
हमरा ओ बना देबाक
जे हमरा जँ तहिया ज्ञान रहैत
तँ अबस्से जिद करितहुँ
वैह बनय लेल
जे बनि गेल छी आई
हमर सौभाग्य!

हमरा बुझल अछि
हमर ओहि जिदकेँ
नहि खंडित करितहुँ अहाँ
हमर महानायक
हमर बाबूजी!