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बाबूड़ा रा दूहा / मानसिंह शेखावत 'मऊ'
Kavita Kosh से
बाबू बणग्यो भाग सूं , अकड़ हुयो अमचूर !
बेमतलब बोलै नहीं , अक्कल मै भरपूर !!
ससतो चनण सीं'त को , बाबू रोज लगाय !
चाँदी को जूतो पड़्यां , नुंवी चमक आ ज्याय !!
छुट्टी का छः लागसी , फिक्सेशन का आठ !
नींतर भाया झेलज्ये , भांत भांत की आंट !!
बक्कर मांगै भायलो , दारू बोतल दोय !
हाकम नैं हक पूगसी , गळत-सळत सब होय !!
फ़ाइल तो फड़-फड़ करै , बड़-बड़ कर्'यो बोस !
बाबू बात जपाय दी , सौ को पत्तो खोस !!
'रूळ' बणावै राजवी, बाबू रूळ रुळाय !
अंगरेजी आवै नहीं , नाँव रूळ कै खाय !!
ठग बणकै ठी-ठी करै , सेवक बणग्या शेर !
केरां ल्हादी काकड़ी , च्यारूंमेर अंधेर !!
लागै पण दीखै नहीं ,आ चाँदी की चोट !
लूटण कै खातर खड़्यो , बाबू बांध लंगोट !!