बाबू, इस बार भी तेरा एक दोष था / राजा पुनियानी
बिहार में एक प्राथमिक विद्यालय में विषाक्त मध्याह्न भोजन से मारे गए निर्दोष बच्चों के नाम
बाबू, इस बार भी तेरा एक दोष था --
तेरे पिताजी के पास पैसे नहीं थे
तुझे वे किसी निजी स्कूल में दाखिला नहीं दिला पाए
जहाँ नहीं दिया जाता कोई मध्याह्न भोजन-वोजन ।
इस बार भी तेरा ही एक दोष था
तुझे लगी थी भूख
और तूने खा लिया ज़हरीला चावल ।
बाबू, हमारी सरकार हमें कितना प्यार करती है
या तो भूखे मार देती है
या भूख मारने के लिए मार देती है
या भूख दिला कर मार देती है
या भूख लेकर मार देती है ।
इस तरह
देश का हरेक सवाल भूख में ही जाके अटक जाता है, बाबू
देश की हरेक सीमा भूख में जाके टकराती है
देश का हरेक समीकरण भूख की संख्याओं के सहारे आँका जाता है
और इस बार यही भूख तुझे तोहफ़ा दे कर चली गई है मौत का ।
बाबू, इस बार भी तेरा ही एक दोष था --
तू एक देश नाम के जंगल का विद्यार्थी था ।
जंगल में जंगल का ही चलता है हिसाब-किताब व भात ।
जंगल में पाठशाला गुफ़ा होती है व गुफ़ा एक वधशाला ।
और तू था कि उसी वधशाला में जाना था तुझे
सीखने के लिए जीवन के गुर ।
तेरी माँ को अब तुझे ढूँढ़ना नहीं चाहिए, बाबू ।
उसे पता है
कि तू अब लौट के नहीं आएगा कभी
वो रोएगी
बस, रोएगी
और तेरी याद को एक ईमानदार माँ की तरह दिल में कस लेगी ।
बाबू, इस बार भी तेरा एक दोष था --
ज़हर में घुला तेरा ख़ून कुछ लिख गया अख़बार के पन्नों में
इस टाल व्यवस्था की निर्लज्जता के बारे में
अर्थात्, लज्जा के बारे में ।
मूल नेपाली से अनुवाद : कालिका प्रसाद सिंह