भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबू आब लेब नहि जूता / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोरे उठि कय कहलनि यार। मङनू अछि सभसँ बुधियार॥
एहि टोलमे अछि नहि नेना। जनु भकड़ार हजारा गेना॥

माय बाप मैयाक दुलार। पाबथि मुनटुन सब परकार॥
जहिना पहिरथि जहिना खाथि। जखने पढबा लै चल जथि॥

नहिओ जाथि न तैयो हर्ज। पण्डितजीकेँ अपने गर्ज॥
मुनटुन केर फुजल छनि थोथी। तखन किएक उघथु ओ पाथी॥

हम जूता कीनब तँ आइ। दिअऽ दाम लै हमरा पाइ॥
एकदिन मुनटुन ठनलनि राड़ि। तखन बापकेँ लगलनि चाड़ि॥

कयलनि ढौआ हेतु जोगाड़। बजला-बौआ चलू बजार॥
बाटे टुनटुन भेलथिन भेट। छलनि हाथमे बड़का गेंट॥

बजला मुनटुन-कीऔ दोस। देखि रहल छी हम बड़ जोश॥
कहू हाथमे की ई थीक। ई फोटो से थीक कथीक॥

यदि पचीसटा नवकापाइ। खर्च करी तँ खाउ मिठाइ॥
देखय चाही तँ अलबत्ता। देखू यैह उपरका गत्ता॥

बाबू हम नहि कीनब जूता। कीनि दिअऽ बरू‘ धीया-पूता’॥
बजला मुनटुन घुरला गाम। साल भरिक दऽ देलथिन दाम॥

‘धीया-पूता’ जनवरी 1960