Last modified on 15 जुलाई 2015, at 13:56

बाबू के मउरिया में लगले अनार कलिया / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बाबू के मउरिया<ref>माथे का मौर</ref> में लगले अनार कलिया<ref>अनार की कली</ref>।
अनार कलिया हे, गुलाब झरिया<ref>गुलाब की झड़ी, पँखुड़ियां</ref>।
बाबू धीरे से चलिहऽ ससुर गलिया॥1॥
बाबू सरहज से बोलिहऽ अमीर<ref>अमीर, शिष्ट व्यक्ति</ref> बोलिया।
बाबू धीरे से चलिहऽ ससुर गलिया॥2॥
बाबू के दोरवा<ref>दुलहे को पहनाया जाने वाला वस्त्र, जिसका निचला भाग घाँघरदार, घेरादार होता है तथा कमर के ऊपर इसकी काट बगलबंदी के ढंग की होती है</ref> में लगले अनार कलिया।
अनार कलिया हे, गुलाब झरिया।
बाबू धीरे से चलिहऽ ससुर गलिया॥3॥
बाबू के अँगुठी में लगले अनार कलिया।
अनार कलिया हे, गुलाब झरिया।
बाबू धीरे से चलिहऽ ससुर गलिया।4॥

शब्दार्थ
<references/>