बाबू जी / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा
सब दिन गैलका मधुरकंठ से भोरे रोज प्रभाती,
सुबह-शाम काली मंदिर में झाङू संझा-बाती,
कथा-वारता कहते सब दिन रहला, हला पुजारी,
जल में कमल समान न कहियो रहला तों संसारी,
सब पुराण के बाँच गेला हल बंगला काशी राम,
पढ़ते-लिखते सब दिन रहला नय कैला आराम,
कंठमाल तुलसी के देखलों चंदन तिलकित भाल,
गेही सदा अगेही रहला बचला अस्सी साल,
गीता-रामायण के पंडित याद कई चालीसा,
शिव के भगत भांग के संग में कभी धतूरा पीसा,
नीलकंठ के नित उपासना बगले में शिवनार,
शाक्त आर शिव वैष्णववादी सादा ऊँच विचार,
पूजापाठी रामनाम के रोज जपलका माला,
जीवन हल सफेद चादर-सन कजै न धब्बा काला।
बंगला हल कंठस्थ महाभारत के कथा कहलका,
शास्त्रार्थ के पंडित बोलला पर मच गेल तहलका।
याद सदा हमरा मन में हे बाबूजी आर माय,
कहो हला सब तीरथ से बढ़कर सेवा है गाय
सदा बनल रहला बाबूजी गृहवासी संन्यासी,
बहुत बार मौनी व्रत कैलका कैलका बहुत एकाशी,
प्रेम आर सद्भाव बाँटते रहला घर या ग्राम,
आदर और प्रेम से लेहे आय तलक सब नाम,
परम शांत, उद्भ्रान्त न कहियो तुलसी, सूर कबीर,
गंगा के समान निर्मल शुचि, शांत, परम गंभीर।