भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबू जी / शिवनारायण / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे जग के जिनगी रोॅ राम
चलथैं रहलौ तोंय अविराम!

शापित पथ के राही छेलौ
जानेॅ कत्तेॅ कलयुग गेलौ
अंतर-बाती जललै तेॅ
पथ होलै झकझक अभिराम!

तोहें दीन-दलित-उद्धारक
सब शोषण केरोॅ संहारक
दुबड़ी तक के दुख सें आहत
बहुजन मुक्ति के मतिराम!

जातिवाद रोॅ तोंय जड़नाशक
समरस समाज के बस पोषक
समदृष्टि सें पोषित जे जन
ऊ सब लेॅ सुख-मान के धाम!

है तोरोॅ पहिलोॅ उद्घोष,
धर्म बदलबोॅ केन्होॅ रोष!
अंग्रेजोॅ के लब्बोॅ चाल
बनेॅ इसाई दलित तमाम।

नया समस्या रोॅ हल छेकै
आपने धर्म-कर्म केॅ फेकै
मानलकै सब्भैं हुनकोॅ मत
उपटै छै यश गामे-गाम।

बस विचार के राजनीति ठो।
दलित सुधारोॅ केरोॅ प्रीति।
डिगलै नै, ज ठानी लैलकै
पूरलकै दै केॅ सब दाम।

रहलै तेॅ सत्तेॅ रोॅ साथ
कहियों दाग नै लागलै हाथ
लोकतंत्र पर देखी कालिख
तेजलकै कुर्सी रोॅ धाम।

जन के श्रद्धा कहै ‘बाबू जी’
युग-युग अमर रहै ‘बाबू जी’
जब तांय जन-जन बहुजन होतै
रहतौं सबमें तोरोॅ नाम।