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बाबू फिकिर करै छोॅ कैहनें / दिनेश बाबा

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बाबू फिकिर करै छोॅ कैहनें
हमरा अभी पढ़ावोॅ नी
बेटा रङ बैसाखी बनभौं
आगू जरा बढ़ावोॅ नी।

बढ़ी केॅ आगू तोरा सें भी
भैय्या सिनी नें करखौं काम
करगिल, द्रास, बटालिक पर वें
लड़ी केॅ ऊँच्चोॅ करखौं नाम
हम्हूँ लड़वै देशोॅ लेली
हमर्हौ वीर बनावोॅ नी।

पूर्णविराम नै छै जिनगी के
आगू हमरा बढ़ना छै
सब कुछ छोड़ि मतर कि पहिनें
खाली लिखना-पढ़ना छै
औंगरी धरी केॅ आभी हमरा
पां-पां करी चलावोॅ नी।

काम के हमरा धुन सवार छै
छै अपना पर भी काबू
करी केॅ रहवै सब हासिल हम
सुनी लेॅ तों हे हो बाबू
हमरोॅ मन में तों ऐन्हें ही
धुन के दिया जरावोॅ नी।

ठौर-ठौर पर ठग के जमघट
बड़ी खोचाहा रस्ता छै
बड़ा कठिन छै राह पर चलवोॅ
जिनगी खुद भारी बस्ता छै
कठिनाई में राह के हमरा
तों पहचान करावोॅ नी।

यहाँ फरेबी जाल फाँस सें
कखनू होय जैभौं उदास तेॅ
दुनियाँ के दस्तूर सें हम्में
होय उठाभौं एकदम निराश तेॅ
आपनोॅ उद्बोधन सें हमरा
धीरज जरा धरावोॅ नी।

बेटी छिकाँ मतुर अबला नैं
बनेॅ देॅ शक्ति के अवतार
हम्हीं दूर गरीबी करभौं
देशोॅ के करभौं उद्धार
बस थोड़ा सन साहले रखिहौ
ऊपर जरा उठावोॅ नी।

बेटा रङ बैसाखी बनभौं
आगू जरा बढ़ावोॅ नी।