भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाम पर आए कितनी शान से आज / रियाज़ ख़ैराबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाम पर आए कितनी शान से आज
बढ़ गए आप आसमान से आज

किस मज़े की हवा में मस्ती है
कहीं बरसी है आसमान से आज

मैं ने छेड़ा तो किस अदा से कहा
कुछ सुनोगे मिरी ज़बान से आज

नीची दाढ़ी ने आबरू रख ली
क़र्ज़ पी आए इक दुकान से आज

कोई जा कर ‘रियाज़’ को समझाए
कुछ ख़फ़ा हैं वो अपनी जान से आज