बायावाँ हमें इसलिए पूछता है / बलबीर सिंह 'रंग'
बायावाँ हमें इसलिए पूछता है
बहारों की दुनिया से हम आ रहे हैं
बतावे कोई अपनी नाकामियों को
सहारों की दुनिया से हम आ रहे हैं
चमन को शिकायत यही बाग़वाँ से
बहारें बदल दीं खि़ज़ायें न बदलीं
बदल डाले तिनके नशेमन के लेकिन
निज़ामे-क़फस की सज़ाएँ न बदलीं
न कलियों का मजमा न काँटों का सदमा
खुदा जाने गुलशन को क्या हो गया है
महकने के मौसम को आबाद रखने
निखारों की दुनिया से हम आ रहे हैं
बयावाँ हमें...
यह माना कि हर चश्म पुरनम न होती
मगर इसका मतलब खुशी तो नहीं है
न जीने की ख्वाहिश न मरने की फुरसत
ये जो कुछ भी हो ज़िन्दगी भी तो नहीं है
कभी शामे ग़म में न जो खुल के रोये
वह क्या मुस्करायेंगे लुत्फे़ सहर में
हमें चाँदनी की चकाचौंध से क्या
सितारों की दुनिया से हम आ रहे हैं
बयावाँ हमें...
कहीं साग़रों मीना हरदम खनकते
कहीं चन्द क़तरों के लाले पड़े हैं
सुना है कि साक़ी भी पीने लगा है
तभी वादा ख़्वानों में ताले पड़े हैं
हमारे लिए क्या नहीं आवे जम ज़म
फरिश्तों ने क्या उसका ठेका लिया है
तुम्हारे लिए मैक़दा हो मुबारिक
खुमारों की दुनिया से हम आ रहे हैं
बयावाँ हमें...