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बारमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'

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बारमोॅ सर्ग

निकुम्भिला सें राजभवन आबै में काल जे लागै
रावण के मानस पर पश्चाताप क्रोध भय जागै

शुक्राचार्य के बात सुनी मन ही मन रावण खीजै
निज भूलोॅ पर रही-रही मनमा ग्लानि सें भीजै

कैन्हैं टूटा यज्ञ छोड़लां सोची माथोॅ नोंचै
है सब बात मनें मन राखी रस्ता भरी वें सोचै

मन्दोदरीं बहुत समुझाबै मेघनाद सुत हमरोॅ
वे जों इन्द्र केॅ जाय हरैतै तब्बेॅ फिन की ओझरोॅ

तोहें मन में खेद नै राखोॅ बेटा होल्हौं तैयार
ओकरा बल पर गरब करी ग्लानि सें होवोॅ पार

मन्दोदरी के बात सुनी फिन रावण ग्लानि त्यागै
खीज, क्रोध, उन्माद शिथिलता फिन मनमां सें भागै

मेघनाद सें देखि नगीची अपना सें कुछू दूरी
कैकसी तरफें कदम बढ़ावै फेनूं आबै घूरी

बहुत देर धरि शान्त रहै मन फिन अशान्ति नें घेरै
वै अशान्ति के दूर करै लेॅ धान्य मालिनी फेरै

जबेॅ अशान्ति ओकरा घेरै काम के लै वें सहारा
है रंङ कैक मास बितलै दोसरों सूझै नै चारा

जबेॅ सैन्य के हाल पूछै तेॅ सेनापति बताबै
बारोॅ साल के युद्ध लड़ी केॅ सेना सब सुस्ताबै

केकरोॅ तन छै घाव से भरलोॅ कत्तेॅ छै बीमार
बैद्य कमी सें राज ठो जूझै केनां हुवेॅ उपचार

सेनापति अकम्पन के सुनि रावण दूत पठाबै
सभे पराजित राजघराना केरोॅ बैद्य बोलाबै

बहुत बैद्य जबेॅ आबी गेलै लंका में ही बसाबै
फिन वै वैद्योॅ सें वे सेना के उपचार कराबै

यै बीचें मन्दोदरी केॅ फिन खुलै गर्भ के द्वार
जेकरा से दोसरोॅ सुत रावण पाबै अक्षय कुमार

मन्दोदरि के साथ कैकसी मिलीजुलि अक्षय पालै
माय कैकसी के दुराव लखि रावण के दिल घालै

फेनू एक राजाज्ञां भेजी सगरो दूत पठावै
राजाज्ञां में कर देबै के बात कही बतलावै

धरती आरो पाताल के राजां कर निर्धारित पाबी
रावण के राजाज्ञां आगू केकरो नै किछु दाबी

डर के मारें राज-खजाना तुरत सभै के खुललै
कर निर्धारित अनुरुपें सोनोॅ वै दूत के मिललै

कर-वसूलि जबें दूत पहुँचलै करी समुन्दर पार
एक ठियाँ जबेॅ जमा है होलै लागै जेनां पहाड़

है रंङ दुइये साल के कर सें दू पहाड़ बनि गेलै
फेनू रावणें दूत भेजि शिल्पी तलास में रहलै

माल्यवान आरो मेघनाद के कार्य भार वें देलकै
सोना के उपयोग करै लेॅ वै दोन्हूं के बतैलकै

बोलै कुछू कालोॅ लेली हम्में, टोह-भ्रमण में जैबै
धरती पर किछु भ्रमण करी केॅ स्वर्ग टोह खुद लेबै

तब तालुक तोरा दुन्हूं मिली के शिल्पी केॅ कमबावोॅ
सौंसे लंका के हर घर तो सोना सें मढ़बाबोॅ

एतनैं कही केॅ चम्पक लेनें उत्तर जनपद गेलै
खरदूषण के जनवासा पर लंकापति ठहरलै

खर तेॅ छेलै जनपद में ही दूषण बाहर छेलै
रावण के आगमन जानि दूषणो दौड़लोॅ अैलै

अैथैं रावण सें हौ बोललै भैय्या मानोॅ बात
हम्मंे गेलां बानर मारै देखी केॅ उत्पात

यै जनपद में बानरें आबी बहुते उधम मचाबै
केकर्हौॅ नोंचि-नोंचि केॅ भागै केकर्हौ काटी खाबै़

नन्दी केरॉे शाप तुरत रावण दिमाग में छैलै
चम्पक छोड़ी, लैकेॅ ठिकानोॅ किष्किन्धा हौ गेलै

बानर राज बालि के देखी ओकरा मारै दौड़ै
तखनीं बालि करि आचमन सन्ध्या व्रत केॅ तोड़ै

पाछू से किछू आहट पावी हौ पीछू दिश उलटै
सम्मुख रावण के पावी वे कांखे धरने पलटै

फिन रात्री शूक्तोॅ में लागी कॉख केजोरें दबाबे
रावण के दशशीष काँख में कड़-कड़ करि जकड़ाबै

है रंङ छटपट करतें कांखें रहि गेलै छोॅ मास
ब्रह्मा केॅ फिन दया लागलै अैलै बालि पास

फिन ब्रह्मा आदेश पावि रावण केॅ बालिं छोड़ै
हुनके ही आदेश से दोन्हूं नया मित्रता जोड़ै

किष्किन्धा सें लौटी रावण चम्पक लैकेॅ उड़लै
सुरपुर पहुँचै मार्ग ही इक उपवन सम्मुख में पड़लै

वै उपवन में क्रीड़ारत जुग्मोॅ युगलोॅ के पाबी
दृष्य देखथैं कन्दर्पे फिन रावण होबै हाबी

कत्तेॅ किन्नर यक्ष आरो गन्धर्वो केरोॅ जोड़ी
उपवन के चहुंओर किलोलै लाज शरम केॅ छोड़ी

वै उपवन रावण नगीच सें एक अप्सरा जाबै
दिव्या भूषण पुष्पहार लै मह-मह करि मंहकावै

काम वाण सें व्याकुल रावण वै अप्सरा केॅ टोकै
काम पिपासा शान्त करैलेॅ रस्ता ओकरोॅ रोकै

अपनोॅ परिचय देकेॅ फिनूं वें संगम इच्छा राखै
मगर अप्सरां हाथ छुड़ावै रावण सें फिनूं भाखै

बोलै रम्भा नाम छै हमरोॅ संकल्पोॅ सें बन्धलोॅ
हम्में इखनी दोसरोॅ पुरुष लेॅ जाय छी ऐसनोॅ सजलोॅ

वै पुरुषें हमरे लेली ही राह जोहतें होतै
तोहें हमरा तंग करोॅ नैं हौ निराश होय जैतै

काम के साथें क्रोध सानिं फिर रावण ओकरा पटकै
काम पिपाशा शान्त करि हौ उपवन में ही अटकै

दिव्याभूषण पुष्पहार सभ टूटी-फूटी गेलै
रम्भा फिन रावण के आगू क्रोधित होय के बोलै

जानै छोॅ तों नलकूबर केॅ ते कैन्हें है नतीजा?
हम्में भेलां पुतोहू तोरोॅ ऊटा लाग्हौं भतीजा

ई कहि गेली नलकूबर लग सभ्भे कथा बताबै
नलकूबर फिन क्रोध में आबी जग के शाप सुनाबै

बिन राजी के कोय स्त्री सें बलत्कार जों करतै
रावण के सभ्भे टा माथोॅ सोॅ टुकड़ा में बँटतै

शाप सुनी जलकूबर केॅ रावण चम्पक चढ़ि जाबै
फेनू कोइयो स्वर्ग-टोह तजि हौ लंका घुरि आबै

भूमंडल पाताल के स्वामी रावण जेन्हैं बनलै
स्वर्ग लोक के हर देवोॅ के मन में शंका भरलै

यम, कुबेर आरो वरुणोॅ पर जबेॅ रावण पड़लै भारी
तबेॅ देवेन्द्रें सोचै मन में अबकी हमरेॅ पारी

याद रहै मरुतोॅ के यज्ञ केॅ जहाँ निमंत्रित छेलै
रूप भयंकर रावण देखी नियग् योनिं नुकैलै

युद्ध निकट जानी केॅ सुरपतिं इक दरबार बोलाबै
सभै देव के कहै सभा में निश्चिित रुपें आबै

इन्द्र सभां त्रिदेव छोड़ि केॅ सभ्भे टा सुर जुटलै
सभ देवोॅ के गोस्सां आखिर रावण माथां फुटलै

सूर्य, चन्द्र, अग्नि, वायु, ग्पिालें माथोॅ छानै
पाँच दिनोॅ के माथा पच्ची कोय निर्णय नैं आनै

कोय निर्णय जब नहीं सपरलै चललै विष्णु पास
कोॅर जोड़ने, मुँह लटकैने, हेय केॅ बहुत निराश

सुरपति बोलै हे परमेश्वर, बहुत आस लै आबौं
इन्द्रलोक के हर विपदा मंे त्राण तोर्हैॅ सें पाबौं

लंकेश्वर रावण के लक्ष्य अब सुरपुर जीतै रहलै
ओकरोॅ अहंकार बल देखी सुरके हिम्मत दहलै

फिन कोइयो उपाय करोॅ प्रभु जेकरा उचित तों जानोॅ
तो उपेन्द्र बनि रावण केॅ बतलाभौॅ ओकरोॅ ठिकानोॅ

बिष्णु बोलै सुरपति सुनलेॅ कान खोलि है बात
अत्याचारी प्राणी नैं सहि सकतै हमरोॅ घात

हमरोॅ घात नै निष्फल हातै जों रावण के मारौं
एक सुदर्शन चक्रोॅ सें ओकरोॅ दशशीश उतारौं

ब्रह्मा शिव वरदानोॅ के फिन मान भंग होय जैतै
सौंसे त्रिलोकोॅ में फेनूं सब देव कलंकित होतै

यै लेली हे श्रेष्ठ देवगण, हमरोॅ आस केॅ छोड़ोॅ
तोरा में अदम्य बल संचित वै में साहस जोड़ोॅ

एक-एक तोरा सभ छोॅ रावण सें कत्तेॅ भारी
जबेॅ तोरा सभ एक होभोॅ तेॅ देभौॅ ओकरा पछारी

रावण अमर अवसि छै पर अजेय कदापि नांही
चौकस रही केॅ युद्ध करै में रावण बान्धलोॅ जाहीं

जों सतर्कता में कटियो टा चूक तोरा सें होतै
फिन युद्धोॅ में लेनीं के देनी के नोबत अैतै

सहस्त्रबाहू आरो बालि के हाथें जे रंङ रावण हारै
सब देवें मिली वहीं दुगर्ति रावण के करेॅ पारै

देव रुपें मारै के जतन हमें मन में नहीं बिचारौं
मनुज रूप धरि अवशि ओकरा धरा जाय संहारौं

बस कुछ काल के बात रहै जेकरा संयम करि टार्हौ
रावण केॅ जेनां तेनां बांधी के समय गुजार्हौ

विष्णु के है बात सुनी देवोॅ में साहस फूटै
युद्ध प्रतीक्षा में रहि केॅ सब बलवर्धन में जूटै