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बारवीं कड़ी : कविता मांय कविता / प्रमोद कुमार शर्मा

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बखत
जको अरथावै हूण नैं
नीं भूलै कदै कविता रै सूण नैं।
तो छेवट आपनैं
प्रमोद कुमार शर्मा री
अेक छोटी-सी कविता सुणावूं
कदै-कदै अेकली बैठी इयां ई गुणगुणाऊं
सुणो-
‘आपणै अठै बीकानेर में भी
            -जठै मॉल है
कमाल है अजै भी नाळ्यां में पाणी पीवै फकीर
पछै भी जे नीं समझै आपणा अै सरीर
कै भाखा अरथविहूणी व्हैगी है
अर संवेदन लीर-लीर
फेरूं भी पोथ्यां छपावणी है
-के मलाल है?
           -कमाल है।’

कविता रै बिचाळै
कविता सुण’र
आप कीं हैरान तो हुवोला
पण जे अेक कविता
दूजी कविता मांय सुवाल नीं उठावै
तो बीं रो हूवणो व्यर्थ है
क्यूंकै हरेक कविता रो अेक ही अरथ है
कै सत चित्त आनंद रो राज आवै
समता ऊपर समाज आवै
सुख अर दुख साझा हुवै
फेरूं हीर अर रांझा हुवै
हर जिग्यां चेतो रुखाळ करै
अळबाद घणी ना काळ करै
मानखै री सुमरती मांय सांस आज्यै
अेक ई ओळी मांय अमेरिका अर फ्रांस आज्यै
अैड़ो विस्तार हुवै अणूतो
कै दुनियाभर नैं नूंतो
देय सकै कविता अेकली आंगणै मांय
पछै सरम के है बीं स्यूं कीं मांगणै मांय
तो आओ-
आपां कविता स्यूं जीवणदान मांगा
अेक अैड़ो राजस्थान मांगा
जठै निज भाखा री पिछाण हुवै
किताबां रै खेतां में आलोचकीय निनाण हुवै
गीत गावै-
खेतां मांय गवाळियो
अर लुगायां रातिजागै मांय
टैमसर बीज पड़ै धरती री कूख
टैमसर पाणी आवै मोघै मांय
खेत हर्या-भर्या सींवां रुखाळता रैवै
गंडका भी गळियां संभाळता रैवै
गाय-भैंस्यां देख’र जोहड़ै री पाळ हरखै
बैठी-बैठी डोकरियां सूत कातै चरखै
किसानां नैं बादळां रो गुमेज हुवै
कवियां साम्हीं लिखण री मेज हुवै
टैमसर रोडवेज री बसां चालै
मिनख स्यूं मिनख री नस्यां चालै
जठै रीत-रिवाज जींवता रैवै
जठै पित्तर सोमरस पींवता रैवै
जठै सतियां रो सत हुवै
जठै संतां री पत हुवै
गवाड़ी रै आभै पक्षी बसै
ना कोई माणस भक्षी बसै
सै दया अर करुणा स्यूं सरोकार राखै
उज्जळ मिनखां मांय व्यौवहार राखै
बोलती टैम मोती-सा झर्या करै
बडेरां स्यूं जवान कीं डर्या करै

साची :
अडीकूं जिस्यै राजस्थान नैं
बीं रै खूंजै मांय
भोत कुछ है गिणान नैं
पण गिणायां स्यूं के हुवै
जे साम्हीं दरकार नीं हुवै
लोक रै कळापै स्यूं कांई हुवै
जे साम्हीं सरकार नीं हुवै

पण :
किण-किण मांय कमी देखूं
इयां ई बूरी बजूंली
इण वास्तै छोड रोवणो
भाखा मांय सजूंली
करस्यूं सोळै सिणगार न्यारा-न्यारा
कद तांई रूसैला प्रीतम प्यारा
छेवट तो म्हनैं म्हारो भरतार मिलसी
अर रुळतै कबीलै नैं सरदार मिलसी
म्हारो सत साहेब अक्षर रूप है
बांरै तांई समूळी छियां अर धूप है
म्हैं बीं नैं ई अराधूंली
अर जगाऊंली काळजै मांय भूचाल
उठावती रैयसूं मरण तांई सुवाल
जिणां नैं कोई मिटाय नीं सकैला
म्हारै बोलणियां नैं थूक गिटा नीं सकैला
अैड़ो तप कर जाऊंली-
चोर नैं हप कर जाऊंली!!
साहूकार नैं ऊंचाया राखसूं सुरगां स्यूं
हूंकार देंवती रैवूंला दुरगां स्यूं
बस इतरो ईज कैवणो है
कीं भी हूज्यै-
म्हनैं तो म्हारी कौम साथै रैवणो है
जको म्हनैं बोलसी
-पढसी
-अरथासी
बो ही भेद स्रिस्टी रो पासी
नींतर बीजी भाखावां घणी है
ओर घणी प्रार्थनावां बणी है
थारो परमेसर राजी रैवै
अर थारी तबीयत साजी रैवै
आ ईज प्रार्थना है-
अबै सिधारूं
आगै बोलणो मना है
क्यूंकै बोल्यां तो बगूं हूँ
पण थांरो ध्यान कना है
.....
परमात्मा रो आदेस है
निगुरै घट मांय नीं रैवणो
बेकार है भींत्यां स्यूं कीं कैवणो
पण जे फेरूं भी
म्हारी बात साच लागै
तो भाखा री गोथळी संभाळ लेइयो
कीं कविता-कहाण्यां रुखाळ लेइयो
के ठा थांरा कुनबा बचज्यै
अर धुन बा रचज्यै
जकी सांवरै री बंसी बणै
अर संवेदना री करेंसी बणै
जिण स्यूं साचो सौदो हुवै
चायै करार हुवै या मसौदो हुवै
हर जिग्यां सत रो राज रैवै
आंख्यां साम्हीं गरीब नवाज रैवै
हमै जाऊं सच खंड रै म्हैलां कानी
जै राजस्थान! जै राजस्थानी!!
.....
इतरो कैय’र
जुबान अंतर्धान होगी
म्हारी गायब मुस्कान होगी
म्हारो खून सो सूकग्यो
कोई गंडक गळी मांय कूकग्यो
रात अपरोगी भूतणी-सी तणगी
बैरण नींद ओर बैरण बणगी
आंख्यां मसळतो-सो
आंगणै मांय आयग्यो

चाँद भी :
म्हारै साथै जागणै मांय आयग्यो
बीं री चाँदणी मांय
तुळसी-दळ चमकै हो
च्याानणो ई च्यानणो समचै हो

म्हैं सोचण ढूक्यो :
कै चाँद मांय आ जकी बूढळी दादी है
ईं रै ई हाथां मांय जूण री खादी है
जिणरै सूत स्यूं समूळो संसार बणै
-प्यार बणै
तांत अर तांत बिचाळै
सांस बापरै आंत अर आंत बिचाळै
आ क्यूं नीं समझै म्हारी बात नैं
चाँद गिरफ्तार द्दह्नङ्ग;द्मह्य गई रात नैं
म्हारो हूवणो व्यर्थ है
-बर्थ है
जेकर रासण दांई कंट्रोल
तो के फायदो करण स्यूं रोल
भांत-भांत री भींत्यां बिचाळै
-आळै-दियाळै
क्यूं ना सोधां पगोथिया महाजनां रा!
समूचै विस्व मांय
महाजनां ई मारग सोध्यो है
ओरां तो हाड रो कूओ खोद्यो है

इण ढाळ सोचतां ई हरहर्राट हुयो
धरती मांय थरथर्राट हुयो
चाँद उतर’र आंगणै मांय आयग्यो
म्हैं भी बीं स्यूं कीं मांगणै मांय आयग्यो
म्हैं हथाळी पसार दी
अग्येय चाँद रै उणियारै साम्हीं
बो मुळक्यो-
म्हैं भी मुळक्यो प्यारै साम्हीं!
मुळक री पुळक मांय
चाँद नकाब हटा दियो
बैमाता आपरो
सत्य बताय दियो
बोली :
‘म्हैं भूमीजा
धारण कर चौरासी री जूण
सुपनै नैं सरजीवण करूं चाँद रै रूप मांय
कदै कदास तो दीसण लागूं दौपारै री धूप मांय।
कारण अेक है-
कठैई सिरजण मांय बाधा है
बीं री निगैदास्ती करूं धोळै दोफारै
देखूं कुण म्हारै हूंवता] सत्य नैं मारै!
सिरजण ही तो म्हारो काम है
क्यूंकै म्हारै घट मांय राम है
राम रावण स्यूं
भाखा री लड़ाई ही तो लड़ी ही
पछै रावण री नाभी क्यूं पड़ी ही

रामायण भाखा मांय
समाज रो सिरजण है
बीं रै बिना
कोई भी समाज निरजण है
बेटा कवि!
तूं तो रामायण नैं घट मांय उतार लै
अर भाखा मांय फेरूं कोई अवतार लै

म्हारी आसीस है
रामजी थारै साथै रैसी
थारा कविसर
-कथेसर
-पढेसरी
-धनेसरी
सै रा सै जग्य करो
अर आखरां री अगन स्यूं
थे अंधारै नैं जीत ङ्घ;द्मह्य
-फीत ल्यो

मोढां ऊपर सत अर सील री
स्यामां फेरूं आसी पिछोला झील री
फेरूं बिकाणो ‘ताज’ बणैगो
फेरूं जैसाणो ‘राज’ बणैगो
फेरूं जैपर कवियां रो दरबार हूसी
फेरूं जोधाणै सिंघां री तकरार हूसी
फेरूं काळीबंगा-भटनेर होसी
फेरूं कोटा-बूंदी-अजमेर होसी
सै रा सै फेरूं
आपरै मिजाज मांय आसी
मानखो फेरूं लिहाज मांय आसी
गांव-गळी सै आबाद हूसी
आपणी फसल आपणी खाद हूसी
कैबत, लोकगीत, आड्यां सै याद हूसी
घूमर-सो घलज्यैगो
चक्कू-सो चलज्यैगो
दुस्मीं री आंत पर
जको अड़ र्यो है दूभांत पर
तूं चिंत्या ना कर!
म्हैं मान्यता लिखूं हूं तांत-तांत पर।’

इतरो कैंवतां ई बैमाता
आभै री ऊंचाइयाँ में थिर व्हैगी
निजर म्हारी जाणै काफिर व्हैगी
बगावत-सी जागण लागी
चाक्की-सी चालण लागी
म्हारै अंतरघट मांय
जागै हो सबद मरघट मांय
अेक रोसनी-सी दीसण लागी
आतमा चाकी पीसण लागी
म्हैं बीं री सरण हूग्यो
म्हारो बीं स्यूं वरण हूग्यो
अणूतै आणंद रो उगाव हूग्यो
ठिकाणैसर पूगाव हूग्यो

अबै म्हैं हूँ अर सबद है
साम्हीं नींद रो समंद है
केई सिलाखंड टूटता दीसै है
कीं कविता-कहाण्यां म्हारै हिस्सै है
जुद्ध जारी रैसी
म्हारै बाद भी आ कविता
म्हारै ऊपर तारी रैसी
अैड़ी सपथ है
आ कविता नीं
अेक राजपथ है

साम्हीं ताज है
पण पैलां समाज है
दोन्यां रै बिचाळै
आम आदमी है
बठै तांई पूगणो है
क्यूंकै भाखा रो सूरज!
रजधरा रो राम!!
तो सर्वात्मा मांय ऊगणो है
बीं सर्वात्मा नैं राम-राम
आलोचकां नैं सात सलाम
अठै खुद री जबान रो गीत
राह बदळै है
क्यूंकै पाठक री
चाह बदळै है!
कविता बियां भी
-लाम्बी होगी
-बाम्बी होगी जाणै साँप री
इण वास्तै खतम करूं
खुद नैं तत्सम करूं
-घणी बात के करूं खाँप री।