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बारहा ख़ुद से पूछता हूँ मैं / राम नाथ बेख़बर

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बारहा ख़ुद से पूछता हूँ मैं
गर बुरा हूँ तो क्यूँ बुरा हूँ मैं

कौन समझा है कौन समझेगा
एक अनजान फ़लसफ़ा हूँ मैं

गूँगे बहरों की भीड़ है शायद
बेवज़ह जिसमें चीख़ता हूँ मैं

फ़िक्र में आसमां की रहता हूँ
जबकि धरती पे रह रहा हूँ मैं

अब तलक मेरी खोज जारी है
एक मुद्दत से गुम- शुदा हूँ मैं

दूर ले जाता है जो मंज़िल से
'बेख़बर' ऐसा रास्ता हूँ मैं