बारिशों के देश में / चन्द्र
मैं बारिशों के देश में बसने वाला
जँगली परिन्दा हूँ
मैं पर्वतों को चीरकर बहने वाली
पहाड़ी नदिया हूँ ।
मेरी झुग्गी-झोपड़ियाँ नहाती हैं मन भर
मैं भींजता हूँ धरती और आकाश भर
मेरे तमाम स्नेहिल बच्चे और बच्चियाँ
पर्वत अँचलों के आँगन में लगाते हैं छप-छप छपकियाँ ।
मेरी माँ जैसी आदिवासी स्त्रियाँ
उबड़-खाबड़ पथारों में
इन्हीं बारिशों में भीग-भीगकर रोपती हैं धान
बारिशों की शीतल बून्दों को मिट्टी के बर्तनों में
रखती हैं सम्भाल कर कई-कई दिनों तक खाना बनाने के लिए ...।
मैं सात बहनों के सँग मिलकर बादलों के परदेस में
गाता रहता हूँ षड्ऋतुओं का वासन्ती गीत
मैं झुण्ड के झुण्ड बदरिले आसमानों में उड़ते हुए चिरई -चुरूँगों
के चोंचों को, पंखों को चूमता हूँ
झूम-झूम नृत्य पर नृत्य कर
इस पर्वत से उस पर्वत
इस पेड़ से उस पेड़ पर
उछलता और कूदता हूँ
मेरा पूरा घर ही है बारिश का
बादलों का
वनफूलों का
झींगुरों का
दादुरों का
मेरा पूरा जीवन ही है बारिश का ।
मैं नद-नदी-द्वीप, वन-जँगल, पर्वत-अँचल, खेत-खलिहान
और असम की सौन्दर्य भरी भूमि का कवि
लिखता हूँ
जीवन की कविता !
मेरे सभी सपने बने हैं बारिश के
हमारे झील झरने भी बने हैं बारिश से
इधर के पर्वतों पर जितने भी पत्थर हैं
सब होना चाहते हैं पानी-पानी बारिश का
लेना चाहते हैं जीवन बादल पर
और बरसना चाहते हैं उन देशों में भी
जहाँ की धरती, जहाँ की भूमि
धुआँ-धुआँ है, आग-आग है
राख राख है ....!