बारिश-1 / मेटिन जेन्गिज़ / मणि मोहन
कल मैंने बारिश को देखा था
बारिश में हर चीज़ आसमान की तरह दिखने लगती है
सब कुछ मण्डराने लगता है ऊपर हवा में
जैसे धरती पर औंधे मुँह गिरने से पहले जम गया हो कुछ पल ले लिए
धरती और आकाश के बीच ज़ेहन हक्का-बक्का होकर
लटक जाता है किसी उड़ते परिन्दे की तरह
मैंने तुम्हारी एक झलक देखी, एक झलक तुम्हारी
बारिश से मिलती-जुलती तुम्हारी देह
और ख़्वाब जैसी बारिश में ख़ुद को फेंक दिया
लिपट गया तुम्हारी देह से
तमाशबीन दया कर रहे थे इस मूर्ख पर
और कहा गया कि पगला गया हूँ मैं
फिर मैं चिल्लाया : अपना भेजा अपने पास रखो
और इस बारिश से दूर रहो ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन
लीजिए, अब यही कविता मूल तुर्की भाषा में पढ़िए
Metin Cengiz
YAĞMUR-1
Yağmurun yağışını seyrettim dün
Her şeyi göğe benzetiyor yağmur
Her şey asılı kalıyor havada
Bir an donmuş gibi yere düşmeden
Akıl yerle gök arasında şaşkın
Uçan kuş gibi asılı kalıyor
Bir an seni gördüm bakışlarını ve yağmura benzeyen bedenini
Attım hayal gibi yağan yağmura kendimi ve sarıldım bedenine
Seyredenler yazık be bu adama aklını mutlaka kaçırmış dedi
Bağırdım: akıl sizin olsun ama dokunmayın sakın yağan yağmura