भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बारिश-3 / वन्दना टेटे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं बारिश में थी
और बारिश मुझमें

मेरे पंख भीग रहे थे
देह नदी हो गई थी

शब्द पानी-पानी हो रहे थे
हंसी झरने की तरह
शोर कर रहे थे

बदमाश बादल मेरे पीछे पड़ा था
किसी आवारा शोहदे की तरह