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बारिश-7 / पंकज राग
Kavita Kosh से
गीलेपन की इंतहा बारिश नहीं होती
इंतहा उत्कर्ष के क्षण में ही हो, यह ज़रूरी भी नहीं
किसी का पूरी तरह से बहकर निकल जाना भी एक चरम-स्थिति है
और उस ख़ास पल में
अन्दर से तरल वह आदमी
बाहर से कितना निराश, बंजर और कितना सूखा दिखता है
सच, गीलेपन की इंतहा बारिश तो हो ही नहीं सकती