बारिश आई है / नेहा नरुका
मैं घर से बाहर निकली हूँ
और बारिश आ गई है ज़ोर से
बारिश भर गई है मेरे कपड़ों में
मैं कपड़ों का भार उतारकर
थकने तक भीगना चाहती हूँ
जैसे भीगती है मोहन राकेश की मल्लिका ।
बहुत इन्तज़ार के बाद बारिश आई है
लग रहा है जैसे ये बारिश की बूंदें नहीं
तुम्हारी अँगुलियाँ हैं
जो मुझे छू रही हैं
महीनों बाद किसी ने मुझे छुआ है
अहा ! बारिश ने मुझे छुआ है !!
एक परिचित औरत
इस बारिश में बैठकर रो रही है
वह ऐसे रो रही है जैसे रोया जाता है किसी कमाऊ आदमी के मरने पर
उसने रोते हुए बताया,
बारिश में गिर गई है उसके कमरे की दीवार,
टीन की छत, अलमारियाँ
और परात में रोटी के लिए माड़ कर रखा आटा
भी बारिश में गिर गया है ।
बक्से में रखे कपड़े बिखरकर सन गए हैं कींच में
अरहर, मूँगफली, धनिये के डिब्बों में भर गया है पानी
एक डिब्बे में कुछ रुपये रखे थे उसने अपने आदमी से छिपाकर
वह डिब्बा भी बारिश में भीग गया है ।
बारिश आई है उसके घर ऐसे
जैसे आया हो कोई स्थानीय गुण्डा
किसी ग़रीब को मारने-पीटने, लूटने
और खूँटे की तरह ज़मीन में ठोकने ।
वह रो रही है
और मैं हँस रही हूँ
अगर वह रो रही है तो मैं कितनी देर हँस सकती हूँ
कितनी देर महसूस कर सकती हूँ तुम्हारे अंगुलियाँ की छुअन
इसका पता भी मुझे अभी-अभी बारिश में ही चला है ।
बारिश ऐसे आई है इस बार मेरे जीवन में
जैसे आई हो जादू में लिपटकर कोई निर्मम वास्तविकता
न मैं ये जादू रोक पा रही हूँ
न बदल पा रही हूँ ये वास्तविकता ।
