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बारिश की बून्दें / विजयशंकर चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
बारिश की बून्दें चुईं
टप...टप...टप
काँस की टटिया पे
छप...छप...छप
बरखा बहार आई
नाच उठा मन
घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।
उपले समेट भागी
साड़ी लपेट भागी
पारे-सी देह भई
देहरी पे फ़िसल गई
अपनी पड़ोसन
घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।
बिल में भरा पानी
दुखी चुहिया रानी
बिजली के तार चुए
जल-थल सब एक हुए
पेड़ हैं मगन
घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।
फरर-फरर बहे बयार
ठण्ड खटखटाए दुआर
कैसे अब आग जले
रोटी का काम चले
मचल रहा मन
घनन घनन घन,
घनन घनन घन ।