बारिश में भीगती लड़की को देखने के बाद / विजय गौड़
एक
झमाझम पड़ती
वर्षा की मोटी धारों के बीच
लड़की चुपचाप
सिर पर छाता ताने चलती है
छाते से चेहरे को
इतना ढक लेती है लड़की
कि आस-पास से गुज़रने वाला
चेहरा भी न देख पाएँ
छाते से ढकी लड़की
होती है आत्म केन्द्रित;
सड़क पर बहते गंदे पानी को देख
लड़की सोचती है,
कितना फ़र्क है नदी और नाले में
जबकि, पानी की नियति
सिर्फ बहना ही है
चप-चप करती
चप्पल की आवाज़ के साथ ही
लड़की गर्दन को पीछे घुमा
देखती है कपड़ों को ;
यह ख़याल आते ही
कि कपड़े तो पूरी तरह से
गंदे हो चुके हैं
लड़की कुढ़ने लगती है
बारिश है कि लगातार
बढ़ती जा रही है
लड़की चाहे जितना कोशिश कर ले
बचने की
पर सामने से आता ट्रक
नहीं छोड़ता
लड़की को भिगोए बगैर
ऊपर से नीचे तक
पूरी तरह से भीग चुकी है लड़की
यही कारण है कि
लड़की ने छाता बंद कर लिया है
बारिश के बीच ठक-ठक करती
चल रही है लड़की
दो
चाय की चुस्कियों के बीच
लड़की का ख़याल आते ही
बाहर वर्षा की मोटी-मोटी धारें
दिखाई देने लगती है
मोटी-मोटी धारों के बीच
लड़की दौड़ रही है
घंटाघर के चारों ओर
तीन
भीगी हुई लड़की को देखने के बाद
ऐसे कितने लोग हैं
जो यह सोच पाते हैं
कि लड़की का भीगना
ख़तरनाक हो सकता है
उसके लिए भी
और देश के लिए भी ।