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बारिश हुई तो धुल के सबुकसार हो गए / वज़ीर आग़ा
Kavita Kosh से
बारिश हुई तो धुल के सबुकसार हो गये
आंधी चली तो रेत की दीवार हो गये
रहवारे-शब के साथ चले तो पियादा-पा
वो लोग ख़ुद भी सूरते-रहवार हो गये
सोचा ये था कि हम भी बनाएंगे उसका नक़्श
देखा उसे तो नक़्श-ब-दीवार हो गये
क़दमों के सैले-तुन्द से अब रास्ता बनाओ
नक्शों के सब रिवाज तो बेकार हो गये
लाज़िम नहीं कि तुमसे ही पहुंचे हमें गज़न्द
ख़ुद हम भी अपने दर-पये-आज़ार हो गये
फूटी सहर तो छींटे उड़े दूर-दूर तक
चेहरे तमाम शहर के गुलनार हो गये