बारिश होने पर लगता है
यह घर ही नीला होकर काँपते-काँपते झर गया है,
मानो अनन्त समय ने कहीं से आकर
भर दिया है घर को,
मानो अजस्र हवाएँ आकर
घर को नदी के तट पर ले गई हैं,
नाव बन कर मैं बही, भीगी
डोलती-डोलती, काँपती-काँपती चलने लगी,
वह दिख रही है मुहाने की रेखा,
मानो चारों ओर लहरें उफन रही हैं
मानो कहीं पर कोई नहीं है
जैसे गहरी रुलाई से रुंध आया हो गला
जैसे भयंकर कठोर रुलाई रुद्ध कर देती है घर का कंठ,
कैसे अनोखे नए इंद्रजाल में
पल-भर में दसों दिशाएँ का~मप उठती हैं
कि मानो सभी कुछ बदल जाएंगे असली सूरत में,
कि जैसे सभी कुछ नृत्य है, छन्द है सभी कुछ,
सभी कुछ रंगा हुआ उजाला,
नींद टूटते ही बारिश देखने पर
बीच-बीच में ऐसा ही होता है
तब प्रार्थना करती हूँ
हे आकाश, घर को ढहाती और बारिश दो।
मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी